Sufinama

मेरे बिछड़े हुए हमदम मेरे देरीना हबीब

बज़मी वारसी

मेरे बिछड़े हुए हमदम मेरे देरीना हबीब

बज़मी वारसी

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    रोचक तथ्य

    (شاعر۔ مئی ۱۹۴۹۔آگرہ)

    मेरे बिछड़े हुए हमदम मेरे देरीना हबीब

    मेरा हर ख़्वाब है लब-तिश्ना-ए-ता'मीर दोस्त

    मेरी गोयाई है बे-जाँ सी तहरीर दोस्त

    अज्नबिय्यत नज़र आती है मुझे राहों में

    कितना मग़्मूम सा रहता हूँ सफ़र-गाहों में

    जल्वा-गाहों से गुज़रता हूँ बे-मा'नी

    ब-हर-अंदाज़ सँवरता हूँ मगर बे-मा'नी

    ख़यालों में तसलसुल इरादों में सबात

    तू ने क्यूँ छीन ली मुझ से मिरी ज़ंजीर-ए-हयात

    तेरी पुर-जोश रिफ़ाक़त है सर-ए-ज़ेहन-ए-नदीम

    मेरे गीतों में समोया है तेरा लहन-ए-नदीम

    हम कि बिछड़े कभी अ'र्सा-ए-बचपन से नदीम

    दो अलग राहों में क्यूँ आज ये आवारा हैं

    कुछ नहीं पुख़्तगी शौक़ में नाकारा हैं

    मेरी मजबूरी जिसे तू ने इरादा समझा

    मेरी कमज़ोरी-ए-फ़ितरत का इआ'दा समझा

    वक़्त ने बढ़ के दिल-ए-साफ़ को बे-नूर किया

    और यूँ तुझ को रिफ़ाक़त से मिरी दूर किया

    हम कि बिछड़े कभी अ'र्सा-ए-बचन से नदीम

    दो अलग राहों में क्यूँ आज ये आवारा हैं

    कुछ नहीं पुख़्तगी शौक़ में नाकारा हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़किरा शोरा-ए-वारसिया (पृष्ठ 163)
    • प्रकाशन : फाइन बुकस प्रिंटर्स (1993)
    • संस्करण : First

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