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पद
हर्फ़ करे है क्या बद-ख़ू ईमान में दरवेशों के
हर्फ़ करे है क्या बद-ख़ू ईमान में दरवेशों केअल-फ़क़र-ओ-फ़क़ीरी आया है शान में दरवेशों के
संत कवि दिलदार
नज़्म
दर बयान-ए-उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती
बहर है आरिफ़ों की कश्ती काफ़ख़्र है हर्फ़ सर-नविश्ती का
नज़ीर अकबराबादी
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ग़ज़ल
वक़ार-ए-इ’श्क़ पर इस दर्द से भी हर्फ़ आता है'अ’ज़ीज़-ए-वारसी' वो दर्द जो पैहम नहीं होता
अज़ीज़ वारसी देहलवी
ग़ज़ल
हर्फ़ नहीं है दीदः-ए-तर टुकड़ों से जिगर के लाएक़ परसैल-ए-अश्क को दरिया समझो उस को निवाड़ा फूलों का
शाह नसीर
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तालिब-ओ-मतलूब
हर्फ़ चे बुवद ता तू अन्देशी अज़ाँसौत चे बुवद ख़ार-ए-दीवारे रज़ाँ
मौलाना रूमी
फ़ारसी कलाम
काम-ए-मनज़ दहान-ए-तू यक हर्फ़ बेश नीस्तबहर-ए-ख़ुदा कि लब ब-कुशा काम-ए-मन बर आर
नूरुद्दीन हिलाली
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
इशारात ब-ख़राबातियान
बदो वज्दे अज़ाँ आलम-रसीदःसमाअ'-ए-जाँ न आख़िर सौत-ओ-हर्फ़-अस्त
मह्मूद शबिस्तरी
ग़ज़ल
चिराग़-ओ-रोशनाई में है शोला-बर्ज़ख़-ए-ताबाँक़लम होर हर्फ़ में बर्ज़ख़ नुक़्तः-ए-मानी-नुमा हैगा
शाह तुराब अली दकनी
ग़ज़ल
हर्फ़ जो रखते हो मुझ पर यहाँ मिरा क्या इख़्तियारजाम-ए-मुल की कैफ़ियत सरशार कहता है कि बोल
शाह तुराब अली दकनी
नज़्म
सी-हर्फ़ी
'तुराब' बीस्त-ओ-हश्त हर्फ़ का बयाँ किया है साराहर-यक बैत में हर-यक मतलब राखा हैगा न्यारा
शाह तुराब अली दकनी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सवाल – चे बहर-अस्त आँ कि इ'ल्मश साहिल आमद
रसद ज़ू हर्फ़-हा ब गोश-ए-सामेअ'सदफ़ ब-शिकन बरूँ कुन दूर्र-ए-शहवार
मह्मूद शबिस्तरी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
नसीम-ए-सुब्ह-ए-सआ'दत बदाँ निशाँ कि तू दानी
मन ईं दो-हर्फ़ नविश्तम चुनाँ कि ग़ैर न-दानीस्ततू हम ज़े रू-ए-करामत चुनाँ ब-ख़्वाँ कि तू दानी