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शम्स साबरी

- 1894 | मुरादाबाद, भारत

औघट शाह वारसी के वालिद-ए-मोहतरम

औघट शाह वारसी के वालिद-ए-मोहतरम

शम्स साबरी के अशआर

ख़याल-ए-ख़ुदा में ख़ुदी को भुला कर

निशान-ए-ख़ुदा हम जमाए हुए हैं

कहाँ ‘शम्स’ बंदा कहाँ तू ख़ुदाया

ख़ुदा-ओ-ख़ुदी हम भुलाए हुए हैं

मुझे क़त्ल कर दिया बे-ख़तर ना किया ज़रा भी ख़ुदा का डर

तेरे इ’श्क़ में ये मिला समर ना इधर का रहा ना उधर का रहा

अब अपना होश है मुझको कुछ उस का ख़्याल

बे-ख़ुदी तारी है जब से हो गई रफ़्तार और

नहीं दीन-ओ-दुनिया का होश अब हूँ हिज्र में तेरी जाँ ब-लब

मुझे काटे खाता है अपना घर ना इधर का रहा ना उधर का रहा

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