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Sufinama
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रज़ा फ़िरंगी महल्ली

1896 - 1978 | लखनऊ, भारत

फ़िरंगी महल्ली लखनऊ के आ’लिम-ए-दीन

फ़िरंगी महल्ली लखनऊ के आ’लिम-ए-दीन

रज़ा फ़िरंगी महल्ली के अशआर

उ’म्र-भर याद-ए-दुर्र-ए-दंदाँ में मैं गिर्यां रहा

क़ब्र पर जुज़ दामन-ए-शबनम कोई चादर हो

तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिरा

किस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर हो

हिज्र के आलाम से छूटूं ये क़िस्मत में नहीं

मौत भी आने का गर वा’दा करे बावर ना हो

उ’ज़्र कुछ मुझको नहीं क़ातिल तू बिस्मिल्लाह कर

सर ये हाज़िर है मगर एहसान मेरे सर हो

तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिरा

किस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर ना हो

उड़ सकें बरसात में किस तरह जुगनू बे-शुमार

जोश-ए-गिर्या में शरर-अफ़शाँ जो दिल अक्सर ना हो

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