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Sufinama
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इरफ़ान इस्लामपुरी

1874 - 1953 | इस्लामपुर, भारत

सूफ़ी मनेरी के शागिर्द-ए-अ’ज़ीज़

सूफ़ी मनेरी के शागिर्द-ए-अ’ज़ीज़

इरफ़ान इस्लामपुरी के अशआर

दीन-ओ-मज़हब से तिरे आशिक़ को अब क्या काम है

वो समझता ही नहीं क्या कुफ़्र क्या इस्लाम है

ये हाल खुला कुछ भी 'इरफ़ाँ'

है तुझ को ये इंतिज़ार किस का

निस्बत तो है बस उसी से सब को

गुल उस के हुए तो ख़ार किस का

क्यूँ दोज़ख़ भी हो जन्नत मुझे जब ख़ुद वो कहे

इस गुनहगार को ले जाओ ये मग़्फ़ूर नहीं

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