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अमीनुद्दीन वारसी

- 1927 | लखनऊ, भारत

रुहानी शाइ’र और “वारिस बैकुंठ पठावन” के मुसन्निफ़

रुहानी शाइ’र और “वारिस बैकुंठ पठावन” के मुसन्निफ़

अमीनुद्दीन वारसी के अशआर

अच्छे से ख़ुश बुरे से ख़फ़ा है ये नٖफ़्स-ए-बद

देखे कोई तो हाल-ए-ज़ार इस शरीर का

तू पास था तो हिज्र था अब दूर है तो वस्ल

सब से अलग है रंग तिरे इस असीर का

होता नहीं है सर से मेरे ये कभी जुदा

एहसान मानता हूँ मैं एहसान-ए-पीर का

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