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वो रसूल-ए-ख़तमी मर्तबत कोई उन-सा रुत्बा-रसा नहीं

शाह हिलाल अहमद

वो रसूल-ए-ख़तमी मर्तबत कोई उन-सा रुत्बा-रसा नहीं

शाह हिलाल अहमद

MORE BYशाह हिलाल अहमद

    वो रसूल-ए-ख़तमी मर्तबत कोई उन-सा रुत्बा-रसा नहीं

    वो ख़ुदा नहीं ब-ख़ुदा मगर वो ख़ुदा से अपने जुदा नहीं

    वो बशर भी हैं वही नूर भी है उन्ही से सब का ज़ुहूर भी

    जो बशर कहें तो ख़ता नहीं कोई हम सा कह दे रवा नहीं

    वो ’अलीम-ए-ग़ैब-ओ-ख़बर हैं वही शान-ए-रब्ब-ए-क़दीर हैं

    हैं ये रब की उन पे 'इनायतें कोई शक भी उस में ज़रा नहीं

    वो तमाम जल्वा-ए-ज़ात-ए-हक़ वो सिफ़ात-ए-रब्ब-ए-कमाल हैं

    किसे हमसरी की मजाल है कोई हम-सर उन का हुआ नहीं

    जो नबी कहें वो ख़ुदा करे ये 'अजीब शान-ए-हबीब है

    हो क़ज़ा का तीर भी बे-असर जो कमाँ से उन के चला नहीं

    वो कभी मलक वो कभी बशर वो कभी हैं दोनों से मारवा

    वो 'अयाँ भी हैं वो निहाँ भी हैं ये हक़ीक़त उन की पता नहीं

    वो दवाम-ए-ज़ात-ए-हबीब है कि फ़ना का उस में गुज़र नहीं

    जो फ़ना-ए-'इश्क़-ए-हबीब है तो बक़ा है उस को फ़ना नहीं

    जो अदब की हद से गुज़र गया नहीं दरीन उस के नसीब में

    ये वो फ़ज़्ल-ए-ख़ास-ए-करीम है किसी बे-अदब को मिला नहीं

    वही कम नज़र वही दर-ब-दर वही दीन-ए-हक़ से है दूर तर

    जो नबी के रुत्बे से बे-ख़बर जो दर-ए-नबी पे झुका नहीं

    ये करम हुज़ूर है आप का कि गुज़र रही है ये ज़िंदगी

    ज़रा ग़मज़दों पे नज़र रहे कोई ग़म भी हम से जुदा नहीं

    ये 'हिलाल' कुश्ता-ए-’इश्क़ है ये क़तील-ए-हिज्र-ओ-फ़िराक़ है

    वो हबीब इस के तबीब हैं कहीं और इस की शिफ़ा नहीं

    स्रोत :
    • पुस्तक : अल-मुजीब (पृष्ठ 530)

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