Sufinama

क्या ख़बर तुम को के क्या करता है 'इश्क़

रफ़ीक़ अशरफ़ी

क्या ख़बर तुम को के क्या करता है 'इश्क़

रफ़ीक़ अशरफ़ी

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    क्या ख़बर तुम को के क्या करता है 'इश्क़

    बादशाहों को गदा करता है 'इश्क़

    रस्म-ए-उल्फ़त यूँ अदा करता है 'इश्क़

    नेज़े पर क़ुरआँ पढ़ा करता है 'इश्क़

    'ऐश-ओ-'इशरत सब फ़ना करता है 'इश्क़

    दिल से दुनिया को जुदा करता है 'इश्क़

    दर-हक़ीक़त रहती है उस की बक़ा

    ज़ात को जिस की फ़ना करता है 'इश्क़

    दिल को भाती ही नहीं फिर राहतें

    दर्द-ए-उल्फ़त जब 'अता करता है 'इश्क़

    दार पर दे कर अनल-हक़ की सदा

    हँस के सूली पर चढ़ा करता है 'इश्क़

    इब्तिदा जिस की मेंह में की थी उस की

    कर्बला में इंतिहा करता है 'इश्क़

    बन गया 'दरवेश' देखो तो रफ़ीक़

    और आगे देखो क्या करता है 'इश्क़

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