दर अज़ल परतव-ए-हुस्नत ज़े-तजल्ली दम ज़द
दर अज़ल परतव-ए-हुस्नत ज़े-तजल्ली दम ज़द
इ'श्क़ पैदा शुद-ओ-आतिश ब-हम: आ'लम ज़द
सृष्टि के आदि में तेरे प्रतिबिम्ब ने चमत्कार का विकास किया, अर्थात् तेरा जलवा प्रगट हुआ। उससे वह प्रेम उत्पन्न हुआ जिसने सारे संसार में आग लगा दी।
जल्व:-ए-कर्द रुख़श दीद मलक इ'श्क़ न-दाश्त
ऐ’न-ए-आतिश शुद अज़ीं ग़ैरत-ओ-बर-आदम ज़द
तेरे मुख ने अपनी प्रभा दिखला कर देखा कि स्वर्गीय दूतों में प्रेम कथा ही नहीं। इस पर उसे क्रोध आ गया और इसी से दुखी तथा लज्जित हो कर वह आदम के ऊपर जा पड़ा।
अ'क़्ल मी-ख़्वास्त कज़ाँ शो'ला चराग़ अफ़रोज़द
बर्क़-ए-ग़ैरत ब-दरख़शीद व जहाँ बरहम ज़द
प्रणय का झूठा दा’वा करने वाले ने यह चाहा कि वह उस रहस्यो से भरे हुए उपवन की सैर करे, परन्तु अदृष्ट से एक ऐसा हाथ निकला जिसने उसे धक्का देकर पीछे लौटा दिया।
मुद्दई' ख़्वास्त कि आयद ब-तमाशा गह-ए-राज़
दस्त-ए-ग़ैब आमद व बर सीन:-ए-ना-महरम ज़द
अन्यान्य सभी लोगों ने भोग विलास और आनन्दोपभोग को पसन्द किया परन्तु तेरे दुखित हृदय ने पुनः उसी पीड़ा को पसन्द किया।
दीगराँ क़ुर्रअ'-ए-क़िस्मत हम: बर ऐश ज़दंद
दिल-ए-ग़म दीद:-ए-मा बूद कि हम बर ग़म ज़द
ऐ साहसी प्राण। तेरा-साहस बहुत ही बढ़ा-चढ़ा था। इसी लिये उसने उन घुँघराली अलकों तक अपना हाथ बढ़ा दिया।
जान-ए-अ'लवी हवस-ए-चाह-ए-ज़नख़दाँ तू दाश्त
दस्त दर हल्क़:-ए-आँ-ज़ुल्फ़-ए-ख़म अंदर ख़म ज़द
हाफ़िज़ ने प्रेम और आनन्द से परिपूर्ण पत्र उसी दिन लिखा जिस दिन उसने आनन्दोपभोग की सभी सामिग्रियों को दूर कर दिया।
'हाफ़िज़' आँ रोज़ तरब-नाम:-ए-इश्क़-ए-तू नविश्त
कि क़लम बर सर-ए-असबाब दिल-ए-ख़ुर्रम ज़द
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