Sufinama

एहसान पर अशआर

हम रंज भी पाने पर मम्नून ही होते हैं

हम से तो नहीं मुमकिन एहसान-फ़रामोशी

बेदम शाह वारसी

मेरी ज़बाँ पे शिकवा-ए-अहल-ए-सितम नहीं

मुझ को जगा दिया यही एहसान कम नहीं

जिगर मुरादाबादी

या तू ने नज़र ख़ीरा कर दी बर्क़-ए-तजल्ली या हम ही

दीदार में अपनी आँखों का एहसान उठाना भूल गए

कामिल शत्तारी

पिलाए ख़ुम पे ख़ुम एहसान देखो

मुझे साक़ी ने ख़ुमख़ाना बनाया

इम्दाद अ'ली उ'ल्वी

तौबा का टूटना था कि रुख़्सत हुई बहार

एहसान-मंद-ए-जुर्म-ओ-ख़ता भी हो सके

वाजिद वारसी

दर्द मिन्नत-कश-ए-दरमान-ए-मसीहा हुआ

तेरा एहसान है यारब कि मैं अच्छा हुआ

मुज़्तर ख़ैराबादी

होता नहीं है सर से मेरे ये कभी जुदा

एहसान मानता हूँ मैं एहसान-ए-पीर का

अमीनुद्दीन वारसी

उ’ज़्र कुछ मुझको नहीं क़ातिल तू बिस्मिल्लाह कर

सर ये हाज़िर है मगर एहसान मेरे सर हो

रज़ा फ़िरंगी महल्ली

दिल दिया जान दी ख़ुदा तू ने

तेरा एहसान एक हो तो कहूँ

कौसर वारसी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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