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ग़ज़ल
अज़ीज़ वारसी देहलवी
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पद
रामानन्द के दास कबीरा नामदेव भक्तन में शूरा
रामानन्द के दास कबीरा नामदेव भक्तन में शूराकलियुग में नीसान बजाया निराकार का पंथ चलाया
भाऊदास जी
फ़ारसी कलाम
शोर-ए-दो-आ'लम यक तरफ़ आँ क़द्द-ए-रा'ना यक तरफ़सदहा क़यामत यक तरफ़ आँ सर्व-ए-बाला यक तरफ़
विलायत
फ़ारसी कलाम
बर-सर-ए-कूयत चूँ सगाँ हर सहरे फ़ुग़ाँ कुनाँहेच म-गोई ऐ फुलाँ तू ज़े-सगान-ए-कीस्ती
फ़ख़रुद्दीन इराक़ी
ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
पद
सत्संग-उपदेश का अंग - लग रहना लग रहना हरि भजन सें लग रहना लग रहना
शूरे पूरे का पारखा रे लड़े घनी से ज़ोरज्ञान कटारी बड़ी रे गुरु गोविंद तलवार
मीरा
ग़ज़ल
कोई मस्त-ए-मय-कद: आ गया मय-ए-बे-ख़ुदी पिला गयान सदा-ए-नग़्मा-ए-दैर उठे न हरम से शोर-ए-अज़ाँ उठा