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बैत
तुम्हारे दीद के मुश्ताक़ सर-ब-सज्दा हैं
तुम्हारे दीद के मुश्ताक़ सर-ब-सज्दा हैंनक़ाब अब तो उलट दीजिए ख़ुदा के लिए
वहशी वारसी
पद
ककहरा - ईया इतना भेद अभेद गुरन से मिलै ठिकाना
गई सिंध के पार यार लख पुरूष पुरानाअरे हाँ रे तुलसी ज्यों सलिता जलधार सिंध धँस जाय समाना
तुलसी साहेब हाथरस वाले
दोहा
विनय मलिका - सीतापति समरत्थ जू साहब सालिगराम
सीतापति समरत्थ जू साहब सालिगरामसेस साइँ सहजहि सबल सिंध-मथन श्री श्याम
दया बाई
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पद
रामानन्द के दास कबीरा नामदेव भक्तन में शूरा
रामानन्द के दास कबीरा नामदेव भक्तन में शूराकलियुग में नीसान बजाया निराकार का पंथ चलाया
भाऊदास जी
पद
अली वली है शेर ख़ुदा के हादी जिन्न-ओ-बशर के
अली वली है शेर ख़ुदा के हादी जिन्न-ओ-बशर केबाब मदीन:-ए-इल्म के हैं यो वसी हैं पैग़म्बर के
संत कवि दिलदार
ग़ज़ल
जाको कोई पकड़े तो कैसे काम करत है नज़र न आएचुपके चुपके सेंध लगावे दिन होवे या अँधेरी रतियाँ
अब्दुलहादी काविश
कवित्त
अनन्य भाव - कहा 'रसखानि' सुखसम्पति सुमार कहा
कहा साधे पचानल कहा सोए बीच नलकहा जीति लाए राज सिंधु आर-पार को
रसखान
शबद
शूरा ताही जानिये लड़े धनी के हेत
शूरा ताही जानिये लड़े धनी के हेतपुरजा पुरजा होय पड़े तहूँ न छाड़े खेत
लालदास
फ़ारसी कलाम
बिया 'मुश्ताक़' ज़ीं ब-गुज़र तू ख़ाक-ए-पा सुलैमाँ शौकि हर कस अज़ जमाल-ए-ऊ कमाल-ए-बेकराँ दारद
मुश्ताक़
कलाम
क्या शोर-ए-क़यामत हो अजब फ़ित्ना हो बरपाजब यार खड़ा हो मिरे बिस्तर के बराबर