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ग़ज़ल
आतिश-ए-इश्क़-ए-सनम सों जोश-ए-मय-ख़ानः हुआबुलबुल-ए-गुलज़ार-ए-वहदत देख दीवानः हुआ
शाह तुराब अली दकनी
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ग़ज़ल
नज़र आए जो इक जल्वः तिरा दैर-ए-बरहमन मेंतो टूटे शैख़ का तक़्वा कि क़िब्ल: हो सनम-ख़ान:
इब्राहीम 'आजिज़'
फ़ारसी कलाम
आँ कि शुद मस्त अज़ मय-ए-तौहीद मी-बीनद चुनींकाँ सनम ख़ुद बाद:-ओ-ख़ुद-साक़ी-ओ-पैमान: अस्त
औहदी
ग़ज़ल
कूचः-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम में अहल-ए-दिल जाते हैं क्यूँऔर जाते हैं तो दिल सी चीज़ छोड़ आते हैं क्यूँ
आसी गाज़ीपुरी
फ़ारसी कलाम
आँ कि शुद मस्त अज़ मय-ए-तौहीद मी-बीनद चुनींकाँ सनम ख़ुद बाद:-ओ-ख़ुद-साक़ी-ओ-पैमान: अस्त
औहदी
फ़ारसी कलाम
शुनीदःअम ब-सनम ख़ान: अज़ ज़बान-ए-सनमसनम-परस्त-ओ-सनम हम सनम-शिकन हम: ऊस्त
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ख़ेशतन दारी कुनेद ऐ आशिक़ाँ बा-दर्द-ए-इश्क़
ऐ 'सनाई' तू ब-बायद कर्दन अज़ मा'नी तुरागर बर आयद मौकब-ए-रिंदाँ व बर्दा-बुरद इश्क़