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ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
मरे लब तक ये आएँ हश्र के दिन जाम बन बन करजो दाग़-ए-मय खिले हैं फूल बन कर मेरे दामाँ में
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ले के दिल उस शोख़ ने इक दाग़ सीने पर दियाजो लिया उस का एवज़ उस से मुझे बेहतर दिया
अहसनुल्लाह ख़ाँ बयान
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मी-कुनी तू ता'न बर किरदार-ए-मा
दाग़-ए-वहदत दर जबीन-ए-ज़ाहिदाँख़त्त-ए-वहदत क़श्क़ः-ए-कुफ़्फ़ार-ए-मा
दारा शिकोह
ग़ज़ल
लिबास-ए-ज़ाहिरी पर मय से बे-शक दाग़ पड़ते हैंमगर पीने से अंदर क़ल्ब के धब्बे नहीं रहते
मुज़्तर ख़ैराबादी
फ़ारसी कलाम
दर हिज्र-ए-तू सोज़ाँ दिलम पार: जिगर अज़ रंज-ओ-ग़मसद दाग़ सीनः अज़ अलम वज़ चश्म दरियाए रवाँ
अहमद रज़ा ख़ाँ
फ़ारसी कलाम
बिया ब-नोश जाम-ए-मय चे जाम-ए-मय तमाम-ए-मयकि मा-ओ-इज़्न-ए-आ'म-ए-मय ख़ुशस्त अरमग़ान-ए-मा
जिगर मुरादाबादी
काफी
ऐ हुस्न-ए-हक़ीक़ी नूर-ए-अज़ल
तैनूँ लाल दाग़ ते बाग़ कहूँगुलज़ार कहूँ बुस्तान कहूँ
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
ग़ज़ल
सोज़ाँ है दाग़-ए-हिज्र मिरे दिल में मिस्ल-ए-शम्अ'ऐ याद-ए-वस्ल-ए-यार बुझा दे उन्हों के तईं