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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ हुदहुद-ए-सबा ब-सबा मी-फ़िरिस्तमत
ऐ हुदहुद-ए-सबा ब-सबा मी-फ़िरिस्तमतबिनिगर कि अज़ कुजा ब-कुजा मी-फ़िरिस्तमत
हाफ़िज़
फ़ारसी कलाम
दिलम अज़ पर्द: ब-शुद दोश कि 'हाफ़िज़' मी-गुफ़्तऐ सबा निकहते अज़ कुए-ए-फ़ुलाने ब-मन आर
हाफ़िज़
पद
आँख अगर है देख तो तू ज़ाहिर है हक़ की क़ुदरत
आँख अगर है देख तो तू ज़ाहिर है हक़ की क़ुदरतफ़लक के नीचे ज़मीं के ऊपर क्या क्या किया है सनअ'त
संत कवि दिलदार
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सवाल - कुदामीन नुक़्त: रा नुत्क़-अस्त अनल-हक़
तू ऊ रा नाम कर्दी नहर-ए-जारीजुज़ अज़ हक़ अंदरीं सहरा दिगर नीस्त
मह्मूद शबिस्तरी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
निगार-ए-मन कि ज़े-जुम्बीदन-ए-सबा ख़ुफ़्तः अस्त
निगार-ए-मन कि ज़े-जुम्बीदन-ए-सबा ख़ुफ़्तः अस्तब-गोई बह्र-ए-दिलम ऐ सबा कुजा ख़ुफ़्तः अस्त
अमीर ख़ुसरौ
पद
शा मुजीबुल्ला फ़ख़्र जहाँ का राज़ी हक़ की रज़ा का
शा मुजीबुल्ला फ़ख़्र जहाँ का राज़ी हक़ की रज़ा कारहनुमा ज़ाहिर बातिन का है 'दिलदार' गदा का
संत कवि दिलदार
पद
ख़ुद-बीं के तुम पास न बैठो वो हक़ से बेगाना है
ख़ुद-बीं के तुम पास न बैठो वो हक़ से बेगाना हैसोहबत उस की हर दाना को ग़म ग़ुस्से का खाना है
संत कवि दिलदार
दोहा
समय दसा कुल देखि कै सबै करत सनमान
समय दसा कुल देखि कै सबै करत सनमान'रहिमन' दीन अनाथ को तुम बिन को भगवान
रहीम
पद
ओँकार सबै कोई सिरजै रागस्वरूपी अंग
ओँकार सबै कोई सिरजै रागस्वरूपी अंगनिराकार निर्गुन अविनासी कर वाही को संग
कबीर
दोहा
मुस्कान माधुरी - ऐ सजनी लोनो लला लखै नंद के गेह
मुस्कान माधुरी - ऐ सजनी लोनो लला लखै नंद के गेहचितयौ मृदु मुस्काइ कै हरी सबै सुधि देह
रसखान
शबद
'लाल' जी हक खाइये हक पीइये हक की करो फरोह
'लाल' जी हक खाइये हक पीइये हक की करो फरोहइन बातन में साहब ख़ुशी विरला करते कोइ
लालदास
ग़ज़ल
कहा अग़्यार का हक़ में मिरे मंज़ूर मत कीजोमुझे नज़दीक से अपने कभू तू दूर मत कीजो
अहसनुल्लाह ख़ाँ बयान
ग़ज़ल
'अफ़क़र' वारसी
ग़ज़ल
हक़ को बातिल कोई किस तरह से कह दे ऐ बुतकहीं सानी नहीं उस हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद का हक़