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ग़ज़ल
मिरी शाए’री को निस्बत है ख़ुदा-ओ-नाख़ुदा सेहो 'अ’ज़ीज़' नुक्तः-चीनी तो हो सोच कर सँभल कर
अज़ीज़ वारसी देहलवी
ग़ज़ल
संजर ग़ाज़ीपुरी
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दोहा
जमला एक परब्ब छबि चंद मधे विविचंद
जमला एक परब्ब छबि चंद मधे विविचंदता मध्ये होय नीकसे केहर चढ़े गयंद
जमाल
पद
इहलीला चंद रचाया पल में त्रैलोक्य नचाया
इहलीला चंद रचाया पल में त्रैलोक्य नचायाउठ के प्रात जसोदा मय्या दे नवनीत पुत्रश्यामा
अमृत राय
ग़ज़ल
दिए साक़ी ने मुझ को चंद जाम आहिस्तः आहिस्तःहुआ ये दौर-ए-मय आख़िर तमाम आहिस्तः आहिस्तः
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
दोहा
जमला ऐसी प्रीत कर जैसी निस अर चंद
जमला ऐसी प्रीत कर जैसी निस अर चंदचंदे बिन निस साँवली निस बिन चंदो मंद
जमाल
फ़ारसी कलाम
ऐ चेहर:-ए-ज़ेबा-ए-तू रश्क-ए-बुतान-ए-आज़रीहर-चंद वस्फ़त मी-कुनम दर हुस्न ज़ाँ बाला-तरी
अमीर ख़ुसरौ
फ़ारसी कलाम
ऐ का'बः तलब चंद कुनी क़त-ए’-बयाबाँचूँ काब:-ए-उ’श्शाक़ बुवद रू-ए-मोहम्मद
अमीर हसन अला सिज्ज़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ब-ऐ'न-ए-हक़ीक़त अंदर ऐन
चंद गोई ज़े-हाल-ए-ग़ैर कि क़ालक़ाल-ए-बे-हाल आर बाशद-ओ-शैन