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पद
सत्संग-उपदेश का अंग - जूनुं थयुं रे देवल जूनुं तो थयुं
जूनुं थयुं रे देवल जूनुं तो थयुंम्हारो हंसलो नानो ने देवल जूनुं तो थयुं
मीरा
फ़ारसी कलाम
दीगर कसे नय दरमियाँ ऐ 'औहदी' अंदर जहाँमा'शूक़-ओ-हम-आ'शिक़ ख़ुदम हाज़ा जुनून-उल-आशिक़ीन
औहदी
ग़ज़ल
जुनूँ को अब जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ कर के छोड़ूँगाहद-ए-दामन को ता-हद्द-ए-गरेबाँ कर के छोड़ूँगा
'अफ़क़र' वारसी
फ़ारसी कलाम
आयत-ए-हुस्न-ए-तू दर मुस्हफ़-ए-जाँ मी-बीनममेहरत अंदर रूख़-ए-हर-ज़र्र: अ'याँ मी-बीनम
मौलाना रूमी
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ग़ज़ल
जुनूँ के जोश में इंसाँ रुस्वा हो ही जाता हैगरेबाँ फाड़ने से फ़ाश पर्दः हो ही जाता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
कलाम
जुनून से कुछ नहीं चारा करे क्या क़ैस बेचाराबरहनः-पा बरहनः-सर फिरे है बन में आवारा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
ग़ज़ल
अज़ीज़ वारसी देहलवी
दकनी सूफ़ी काव्य
हालात-ए-विलादत आँ-हज़रत
कहा अब्दुल-मुतल्लिब सात मिल करकताँ हूँ ख़ुश खबर सुन शाद दिल कर
करीमुद्दीन सरमस्त
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ज़ाहिद-ए-ख़ल्वत-नशीं दोश ब-मय-ख़ान: शुद
नर्गिस-ए-साक़ी ब-ख़्वांद आयत-ए-अफ़्सूँ-गरीहल्क़ः-ए-औराद-ए-मा गर्दिश-ए-पैमानः शुद
हाफ़िज़
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
क़ाएदः - ज़े-तू हर फ़े'ल कि अव्वल गश्त ज़ाहिर
हम: पैदा शवद आँ जा ज़मायरफ़रव ख़्वाँ आयत-ए-तुबलस-सरायर