Sufinama
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शिवनारायण

शिवनारायण की साखी

निराधार आधार नहिं, बिन अधार की राह।

शिवनारायन देश कहं, आपुहिं आपु निबाह।।

जब मन बहकै उड़ि चलै, तब आनै ब्रह्म ग्यान।

ग्यान खड़ग के देखते, डरपे मनके प्रान।।

जहं लगि आये जगत महं, नाम चीन्ह नहिं कोय।

नाम चिन्हे तौ पार ह्वै, संत कहावत सोय।।

चालिस भरि करि चालि धरि, तत्तु तौलु करु सेर।

ह्वै रहु पूरन एक मन, छाडु करम सब फेर।।

दुनिया को मद कर्म है, संतन को मद प्रेम।

प्रेम पाय तौ पार है, छुटै कर्म अरु नेम।।

संतमंत सबत परे, जोग भोग सब जीति।

अदग अनंद अभै अधर, पूरन पदारथ प्रीति।।

एक एक देख्यो सकल घट, जैसे चंद की छांह।

वैसे जानो काल जग, एक एक सब मांह।।

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