शैख़ शरफ़ुद्दीन यह्या मनेरी के दोहे
बाट भली पर साँकरी, नगर भला पर दूर।
नन्ह भला पर पातला, नारी कर हर चूर।।
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साँकर कुएँ पताल पानी, लाखन बूँद बिकाय।
बजर परो तँह मथुरा नगरी, कान्ह पियासा जाय।।
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शर्फ सिर्फ मायल करे, दर्द कछू न बसाय।
गर्द छुए दरबार की, सो दर्द दूर हो जाय।।
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काला हंसा निरमला, बसे समंदर तीर।
पंख पसारे बिख हरे, निरमल करे सरीर।।
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