Sufinama
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शेख़ अहमद खट्टू

1338 - 1446 | सरखेज़, भारत

शेख़ अहमद खट्टू के दोहे

तू जाने करतार, जी मुझ साजन बे-पीरा।

सांई ही की सार, पांजर मां जोबन बसे।।

तती बंधी कंजी, ज्यूं घन ओझल होय।

मूरख राखै नैन, मूंह के राखे होय।।

दूखा काजल जे करुँ, तो सोकन दुःख दीन्ह।

पियु देखन दीन्ह मुझ, आप देख सकीन्ह।।

दिपती बुझती एक पल, जानो बरस पचास।

जीकन देख दीस की, बरस अंत मास।।

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