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शकील बदायूँनी

1916 - 1970 | मुम्बई, भारत

मा’रूफ़ फ़िल्म गीत-कार और बेहतरीन शाइ’र

मा’रूफ़ फ़िल्म गीत-कार और बेहतरीन शाइ’र

शकील बदायूँनी के अशआर

हर क़दम कश्मकश हर-नफ़स उलझनें ज़िंदगी वक़्फ़ है दर्द-ए-सर के लिए

पहले अपने ही दरमाँ का ग़म था हमें, अब दवा चाहिए चारागर के लिए

क़ातिल को है ज़ो'म-ए-चारा-गरी अब दर्द-ए-निहाँ की ख़ैर नहीं

वो मुझ पे करम फ़रमाने लगे शायद मिरी जाँ की ख़ैर नहीं

उतरा वो ख़ुमार-ए-बादा-ए-ग़म रिंदों को हुवा इदराक-ए-सितम

खुलने को है मय-ख़ाने का भरम अब पीर-ए-मुग़ाँ की ख़ैर नहीं

मैं ने बख़्शी है तारीकियों को ज़िया और ख़ुद इक तजल्ली का मुहताज हूँ

रौशनी देने वाली को भी कम से कम इक दिया चाहिए अपने घर के लिए

मुझे रास आएं ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअ’तें

उन्हें ए’तबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ए’तबार-ए-सितम नहीं

मेरी ज़िंदगी पे मुस्कुरा,मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं

जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं

मुझे रास आएं ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअ’तें

उन्हें ए’तबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ए’तबार-ए-सितम नहीं

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