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सब्र लखनवी

“अफ़्साना आ’शिक़-ए-दिल-गीर उ’र्फ़ शीरीं फ़र्हाद बित्तस्वीर के मुसन्निफ़।

“अफ़्साना आ’शिक़-ए-दिल-गीर उ’र्फ़ शीरीं फ़र्हाद बित्तस्वीर के मुसन्निफ़।

सब्र लखनवी के अशआर

कोई उम्मीद रिहाई की थी ‘सब्र’ मुझे

उन की ज़ुल्फ़ों से मुक़द्दर में जो था दिल निकला

जिस जगह अम्न समझ कर मैं ज़रा जा बैठा

मेरी तक़दीर से वो भी दर-ए-क़ातिल निकला

बज़्म-ए-मातम में वह गुल लाया है साथ अग़यार को

मेरे फूलों में किया है उस ने शामिल ख़ार को

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