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रहीम

1553 - 1626 | आगरा, भारत

अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ानां एक अच्छे शाइ’र और क़िस्सा-गो थे, वो इ’ल्म-ए-नुजूम के अ’लावा उर्दू और संस्कृत ज़बान के एक फ़सीह-ओ-बलीग़ शाइ’र थे, पंजाब के नौशहर ज़िला’ में एक देहात को उनके नाम ख़ान ख़ानख़ाना से मौसूम किया गया है

अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ानां एक अच्छे शाइ’र और क़िस्सा-गो थे, वो इ’ल्म-ए-नुजूम के अ’लावा उर्दू और संस्कृत ज़बान के एक फ़सीह-ओ-बलीग़ शाइ’र थे, पंजाब के नौशहर ज़िला’ में एक देहात को उनके नाम ख़ान ख़ानख़ाना से मौसूम किया गया है

रहीम के दोहे

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रहिमन पानी राखिये बिनु पानी सब सून

पानी गए ऊबरे मोती मानुष चून

रहिमन बात अगम्य की कहन सुनन की नाहिं

जे जानत ते कहत नहि कहत ते जानत नाहिं

रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकाय

टूटे से फिर ना मिले मिले गाँठ पड़ जाय

बड़े बड़ाई ना करैं बड़ो बोलैं बोल

'रहिमन' हीरा कब कहै लाख टका मो मोल

रहिमन चुप ह्वै बैठिए देखइ दिनन को फेर

जब नीके दिन आइहैं बनत लगिहै देर

'रहिमन' ओछे नरन सों बैर भलो ना प्रीति

काटे चाटै स्वान के दोऊ भाँति विपरीति

'रहमन' गली है सॉकरी दूजो ना ठहराहिं

आपु अहै तो हरि नहीं हरि तो आपुन नाहिं

रहिमन निज मन की बिथा मन ही राखो गोय

सुनि अठिलैंहैं लोग सब बाँटी लैहै कोय

समय पाय फल होत है समय पाय झरि जात

सदा रहे नहिं एक सी का 'रहीम' पछितात

'रहिमन' प्रीति कीजिए जस खीरा ने कीन

ऊपर से तो दिल मिला भीतर फाँकें तीन

रहिमन देखि बडेन को लघु दीजिए डारी

जहाँ काम आवे सुई कहा करे तलवारि

रहिमन वे नर मर चुके जे कहुँ माँगन जाहिं

उनते पहिले वे मुए जिन मुख निकसत नाहिं

मथत मथत माखन रहै दही मही बिलगाय

'रहिमन' सोई मीत है भीर परे ठहराय

रहिमन तीर की चोट ते चोट परे बचि जाय

नैन बान की चोट ते चोट परे मरि जाय

'रहिमन' अती कीजिये गहि रहिए निज कानि

सैंजन अति फूले तऊ डार पात की हानि

ससि सुकेस साहस सलिल मान सनेह 'रहीम'

बढ़त बढ़त बढ़ि जात हैं घटत घटत घटि सीम

'रहिमन' ये तन सूप है लीजै जगत पछोर

हलुकन को उड़ि जान दै गरुए राखी बटोर

रहिमन ब्याह बिआधि है, सकहु तो जाहु बचाय

पायन बेड़ी पड़त है ढोल बजाय बजाय

राम जाते हरिन सँग सीय रावण साथ

जो 'रहीम' भावी कतहुँ होत आपुने हाथ

मान सहित विष खाय के संभु भये जगदीस

बिना मान अमृत पिये राहु कटायो सीस

रहिमन प्रीति सराहिए मिले होत रँग दून

ज्यों जरदी हरदी तजै तजै सफ़ेदी चून

रहिमन बिपदाहू भली जो थोरे दिन होय

हित अनहित या जगत में जानि परत सब कोय

वे रहीम नर-धन्य हैं पर उपकारी अंग

बाँटनवारे को लगे ज्यों मेंदही को रंग

ये रहीम सराहिये देन लेन की प्रीत

प्रानन बाजी राखिये हारि होय कै जीत

रहिमन कठिन चितान ते चिंता को चित चेत

चिता दहति निर्जीव को चिंता जीव समेत

रहिमन नीच प्रसंग ते नित प्रति लाभ विकार

नीर चोरावै संपुटी मारु सहै घरिआर

रहिमन जिह्वा बावरी कहिगै सरग पताल

आपु तो कहि भीतर रही जूती खात कपाल

रहिमन रिस को छाँड़ि कै करौ गरीबी भेस

मीठो बोलो नै चलो सबै तुम्हारो देस

सब को सब कोऊ करै कै सलाम कै राम

हित 'रहीम' तब जानिए जब कछु अटकै काम

रहिमन माँगत बडेन की लघुता होत अनूप

बलि मख माँगन को गए धरि बावन को रूप

होत कृपा जो बडेन की सो कदाचि घटि जाय

तौ 'रहीम' मरिबो भलो ये दुख सहो जाय

ये 'रहीम' मानै नहीं दिल से नवा जो होय

चीता चोर कमान के नये ते अवगुन होय

सौदा करो सो करि चलौ रहिमन याही बाट

फिर सौदा पैहो नहीं दूरि जान है बाट

रहिमन अपने गोत को सबै चहत उत्साह

मृग उछरत आकाश को भूमी खनत बराह

रहिमन तब लगि ठहरिए दान मान सनमान

घटत मान देखिय जबहिं तुरतहि करिए पयान

रहिमन सुधि सबते भली लगै जो बारम्बार

बिछुरे मानुष फिरि मिलें यहै जान अवतार

रहिमन याचकता गहे बड़े छोट ह्वै जात

नारायण हू को भयो बावन आँगुर गात

रहिमन मनहिं लगाइ के देखि लेहु किन कोय

नर को बस करिबो कहा नारायण बस होय

रहिमन असमय के परे हित अनहित ह्वै जाय

बधिक बधै मृग बाँसों रुधिरै देत बताय

रहिमन चाक कुम्हार को माँगे दिया देइ

छेद में डंडा डारि कै चहै नाँद लै लेइ

रहिमन यो सुख होत है बढ़त देखि निज गोत

ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि आँखिन को सुख होत

ये रहीम जिन संग लै जनमत जगत कोय

बैर प्रीति अभ्यास जस होत होत ही होय

समय दसा कुल देखि कै सबै करत सनमान

'रहिमन' दीन अनाथ को तुम बिन को भगवान

रहिमन खोज ऊख में जहाँ रसन की खानि

जहाँ गाँठ तहँ रस नहीं यही प्रीति में हानि

मान सरोवर ही मिले हंसनि मुक्ता भोग

सफरिन भरे 'रहीम' सर बक बालक नहिं जोग

साधु सराहै साधुता जती जोखिता जान

रहिमन साँचे सूर को बैरी करै बखान

रहिमन नीचन संग बसि लगत कलंक काहि

दूध कलारी कर गहे मद समुझै सब ताहि

राम नाम जान्यो नहीं भइ पूजा में हानि

कहि 'रहीम' क्यूँ मानिहैं जम के किंकर कानि

रहिमन राम उर धरै रहत बिषय लपटाय

पसु खर खात सवाद सों गुर गुलियाए खाय

रहिमन निज संपति बिना कोउ बिपति सहाय

बिनु पानी ज्यो जलज को नहिं रवि सकै बचाय

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