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क़ैसर शाह वारसी

1887 | कराची, पाकिस्तान

क़ैसर शाह वारसी के अशआर

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मेरी ख़ुशी ख़ुशी नहीं मेरा अलम अलम नहीं

मुझ को हँसा गया कोई मुझ को रुला गया कोई

इधर तो आँखों में आँसू उधर ख़याल में वो

बड़े मज़े से कटी ज़िंदगी जुदाई में

मिरा इ‘श्क़ मंज़र-ए-आ’म पर तिरा हुस्न पर्दा-ए-राज़ में

यही फ़र्क़ रोज़-ए-अज़ल से है तिरे नाज़ मेरे नियाज़ में

आज तो 'क़ैसर'-ए-हज़ीं ज़ीस्त की राह मिल गई

के ख़याल-ओ-ख़्वाब में शक्ल दिखा गया कोई

गुल तिरे गुलशन है तेरा सब बहारें हैं तेरी

आशियान-ओ-बर्क़ सब कहते हैं अफ़्साना तिरा

गुल तिरे गुलशन है तेरा सब बहारें हैं तेरी

आशियान-ओ-बर्क़ सब कहते हैं अफ़्साना तिरा

वो होश है वो बे-ख़ुदी ख़िरद रही जुनूँ रहा

ये तिरी नज़र की हैं शोख़ियाँ ये कमाल है तिरे नाज़ में

इधर तो आँखों में आँसू उधर ख़याल में वो

बड़े मज़े से कटी ज़िंदगी जुदाई में

कभी तन्हाई-ए-मंज़िल से जो घबराता हूँ

उन की आवाज़ ये आती है कि मैं आता हूँ

बे-ख़ुदी की यही तकमील है शायद दोस्त

तू जो आता है तो मैं होश में जाता हूँ

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