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Sufinama
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महबूब वारसी गयावी

गया, भारत

महबूब वारसी गयावी के अशआर

दम तोड़ रहा है देख ज़रा आ’शिक़ है तिरा कुश्ता है तिरा

मोहनी सूरत वाले हसीं महबूब को यूँ बर्बाद कर

कोशिश तो बहुत की मैं ने मगर क़िस्मत की थी कुछ अपनी ख़बर

ले सब्र से काम दिल-ए-मुज़्तर जब दाद नहीं फ़रियाद कर

अब दिल का है वीरान चमन वो गुल हैं कहाँ कैसा गुलशन

ठहरा है क़फ़स ही अपना वतन सय्याद मुझे आज़ाद कर

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