जगजीवन जी महाराज हरिदास जी के समकालीन थे। बारह निरंजनी महन्तों में इनकी गणना की जाती है। निरंजनी संप्रदाय की परंपरा में ये महाराज हरिदास जी के शिष्य थे। इनका रचनाकाल सोहलवीं शती के उत्तार्द्ध व सतरहवीं का पूर्वार्द्ध है।
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