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Imdad Ali Ulvi's Photo'

इम्दाद अ'ली उ'ल्वी

1839 - 1901 | हैदराबाद, भारत

हैदराबाद के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि

हैदराबाद के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि

इम्दाद अ'ली उ'ल्वी के अशआर

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जिसे देखा यहाँ हैरान देखा

ये कैसा आईना-ख़ाना बनाया

जान दी बुलबलों ने जब गुल पर

तब वो गुलज़ार में नज़र आया

आप देखा उसने अपने आपको

हमको आईना बनाया यार ने

मिट जाये अपनी हस्ती-ए-मौहूम ग़म है क्या

हो दिल को तिरा ग़म कोई हो हो हो हो

जब तलक मेरी ख़ुदी बाक़ी रही सब कुछ था

रह गया फिर तो फ़क़त नाम-ए-ख़ुदा मेरे बा’द

ढ़ूंढ़े असरार-ए-ख़ुदा दिल ने जो अंधा बन कर

रह गया आप ही पहलू में मुअ’म्मा बन कर

गह यार बना गाह बना सूरत-ए-अग़यार

अपना ही बना आईना अपना ही परस्तार

हर आँख की तिल में है ख़ुदाई का तमाशा

हर ग़ुन्चा में गुलशन है हर इक ज़र्रा में सहरा

मुझसे अव़्वल था कुछ दह्र में जुज़ ज़ात-ए-ख़ुदा

ग़ैर-ए-हक़ देखा तो फिर कुछ रहा मेरे बा’द

पिलाए ख़ुम पे ख़ुम एहसान देखो

मुझे साक़ी ने ख़ुमख़ाना बनाया

कश्ती में दरिया दरिया में कश्ती सिफ़ली में उ’लवी उ’लवी में सिफ़ली

तूफ़ाँ में मौजें मौजों में यम है जाने सो देखे देखे सो समझे

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