इब्न-ए-निशाती का परिचय
उत्तर भारत में खड़ी (हिंदी) बोली की कविता 19वीं सदी के अंत में नाममात्र की और वो भी बेमन से हुई। वस्तुतः उसका आरंभ 20वीं सदी के आरंभ से होता है। जिसमें दो शताब्दियाँ सिर्फ़ अभ्यास करने की थी, लेकिन अलाउद्दीन और मोहम्मद तुग़लक़ की दकन विजय के पश्चात जो लाखों मुसलमान सामन्त, सैनिक, शिल्पकार आदि दकन गए उनके ही कारण दक्षिण में गुलबर्गा, गोलकुंडा और बीजापुर में खड़ी बोली की कविता प्रारंभ हुई। इस दकनी खड़ी हिंदी कविता के सूर और तुलसी- वजही, क़ुली क़ुतुब शाह और गव्वासी थे। यह कविता प्रवाह तब तक विकसित होता चला गया जब तक कि औरंगजेब ने दकन की इन रियासतों को 1686-1687 ई. में ख़त्म नहीं कर दिया। दकनी का अंतिम महाकवि वली (1700 ई.) उर्दू कविता का आरंभ भी करता है।
निशाती या इब्न-ए-निशाती 17वीं सदी के मध्य में गोलकुंडा में हुआ था। ये समय सुल्तान अब्दुल्ला क़ुतुब (1624-72 ई.) का था जो कि ख़ुद बहुत ऊँचे कवि न होते हुए भी कविता प्रेमी थे। निशाती सुल्तान अब्दुल्ला के दरबार का उच्च पदाधिकारी था। इसकी एक ही मसनवी मिली है जिसका नाम 'फूलबन' है। कवि ने इसे फ़ारसी की मसनवी 'बिसाते' के आधार पर लिखा है।