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हरिनाथ

हरिनाथ के दोहे

बलि बोई कीरति लता कर्ण करी द्वैपात

सींची मान महीप ने जब देखी कुम्हिलात

जाति जाति ते गुन अधिक सुन्यो कबहूँ कान

सेतु बांधि रघुबर तरे हेला दे नृप मान

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