गुलाल साहब के दोहे
माला जपों न मंतर पढ़ों मन मानिक को प्रेम
कंथ गूदरि पहिरौं नहीं कह 'गुलाल' मेरे नेम
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गुलाल ताखी तत्त दियो प्रेम सेल्हि हिये नाय
सुमिरिनी मन महँ फिरयो आठ पहर लौ लाय
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गूदर धागा नाम का सूई पवन चलाय
मन मानिक मनि गन लग्यो पहिर 'गुलाल' बनाय
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'गुलाल' माला नाम का राखो गर में नाय
कोटि जतन छूटे नहीं रहो जोति लपटाय
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