Sufinama
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दूलनदास जी

दूलनदास जी के दोहे

'दूलन' ये मत गुप्त है प्रगट करो बखान

ऐसे राखु छिपाय मन जस बिधवा औधान

राम नाम दुइ अच्छरै, रटै निरंतर कोय

'दूलन' दीपक बरि उठै मन प्रतीति जो होय

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