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Sufinama
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बाँके लाल

बाँके लाल के अशआर

कुछ तो कर खौफ़-ए-खुदा दिल में ज़ालिम अपने

दिल-ए-उ’श्शाक़ को इस तरह़ से बर्बाद कर

हँसी कहाँ मज़ाक़ कहाँ दिल-लगी कहाँ

वह जोश-ए-इर्तेबात कहाँ वो ख़ुशी कहाँ

आह-ओ-फ़ुग़ाँ है शोर है नाला है दर्द है

ग़म है अलम है यास है लब पर हंसी कहाँ

है मक़्तल में क़ातिल के इक वार का

कलेजा हुआ सर हुआ दिल जुदा

ग़म-ओ-हस्रत-ओ-दर्द रंज-ओ-तअ’ब

मोहब्बत में तेरी ये हासिल हुआ

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