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अक़्ल वारसी

हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और लखनऊ के शाइ’र-ए- मश्शाक़

हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और लखनऊ के शाइ’र-ए- मश्शाक़

अक़्ल वारसी का परिचय

उपनाम : 'अक़्ल'

 

अ’क़्ल वारसी लखनवी सिलसिला-ए-वारसिया के मा’रूफ़ शाइ’र गुज़रे हैं| अ’क़्ल वारसी की पैदाइश सादात ख़ानदान में उत्तर-प्रदेश के शहर लखनऊ में हुई थी। ये शीआ’ मज़हब से तअ’ल्लुक़ रखते थे। उनकी इब्तिदाई ता’लीम घर पर ही हुई थी। उन्होंने आ’ला ता’लीम अपने पीर-ओ-मुर्शिद से ही हासिल की। वो इब्तिदा से ही सूफ़ी रंग में रंग गए। अ’क़्ल वारसी की शाइ’री उनके पीर-ओ-मुर्शिद हाजी वारिस अ’ली शाह की देन थी। अ’क़्ल वारसी फ़ारसी ज़बान के माहिर थे। बड़े आ’लिम फ़ाज़िल थे। लखनवी ज़बान बोलते थे। उनकी शाइ’री फ़ारसी ज़बान में है। उन्होंने क़सीदे ज़्यादा लिखे हैं। उन्होंने अपने पीर-ओ-मुर्शिद की ता’रीफ़ में जो क़सीदा लिखा है उसका नाम “क़सीदा-ए-इत्तिहाद” है| अ’क़्ल वारसी फ़ारसी के साथ-साथ अ’रबी ज़बान के भी माहिर थे। उन्होंने अपनी शाइ’री में क़ुरआनी आयतों का कसरत से इस्ति’माल किया है। उनकी फ़ारसी ज़बान आसान और असर-पज़ीर कही जा सकती है। उन्होंने अपने क़सीदों में तम्सील का इस्ति’माल कर के उन्हें काफ़ी दिलचस्प बना दिया है। उन्होंने अपने क़सीदों में तख़ल्लुस का इस्ति’माल नहीं किया है। इस से ये पता चलता है कि वो नाम-ओ-नुमूद और शोहरत के ख़्वाहिश-मंद न थे।

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