इ’श्क़त न सरसरीस्त कि अज़ सर ब-दर शवद
इ'श्क़त न सरसरीस्त कि अज़ सर ब-दर शवद
मेहरत न आ'रिज़ीस्त कि जाए दिगर शवद
तेरा प्रेम कोई साधारण वस्तु नहीं है जिसकी सुधि भुला दी जाय। पर तेरे प्रति मेरे हृदय में जो प्रणय की जड़ जम गई है वह ऐसी नहीं है कि उसे निकाल कर दूर फेंक दिया जाय।
इ'श्क़-ए-तू दर वजूदम-ओ-मेहर-ए-तू दर दिलम
बा-शीर अंदरूँ शुद-ओ-बा-जाँ बदर शवद
मेरे सीने और मेरे हृदय में तेरे प्रेम ने पैदाइश के साथ
प्रवेश किया था और अब वह प्राणों के साथ निकलेगा।
दर्दे-अस्त दर्द-ए-इश्क़ कि अंदर इ'लाज-ए-ऊ
हर-चंद सई बेश-नुमाई बतर शवद
इस नगर में केवल मैं ही एक ऐसा मनुष्य हूँ जिसकी
प्रेम में रोने की आवाज़ आकाश तक पहुँच जाती है।
अव्वल यके मनम कि दरीं शह हर शबे
फ़र्याद-ए-मन ज़े-इश्क़ ब-अफ़लाक बर शवद
यदि मैं अपनी आँखों से आँसू बहाऊँ तो एक नदी
प्रकट होकर तमाम खेतों को भर दे।
वर ज़ाँ कि मन सरिश्क फ़िशानम ब-ज़िन्दः रवद
किश्त-ए-इ'राक़ जुम्ल: ब-यक-बार तर शवद
रात मैंने अपने प्रियतम के मुख को देखा। उसे काली अलकों ने आच्छादित कर रक्खा था। उसे देखकर ऐसा ज्ञात होता था मानो चन्द्रमा को बादलों ने ढक लिया हो।
दी दरमियान-ए-ज़ुल्फ़ ब-दीदम रुख़-ए-निगार
बर हैअते कि अब्र मुहीत-ए-क़मर शवद
ऐ हृदय। यदि तू उसके अधरों की याद में मदिरा पीकर मतवाला बनना चाहता है तो इस प्रकार अपना कार्य कर कि बैरियों को ख़बर न होने पावे।
ऐ दिल बयाद ला'लश अगर बादा मी-ख़ुरी
म-गुज़ार हाँ कि मुद्दइयाँ रा ख़बर शवद
यदि तुम हाफ़िज़ की समाधि पर चलो तो वह उसमें से निकल कर तुम्हारे पैरों का चुम्बन ले ले।
'हाफ़िज़' सर अज़ लहद ब-दर आरद ब-पा-ए-बोस
गर ख़ाक-ए-ऊ ब-पा-ए-शुमा पए-ए-सिपर शवद
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