'इश्क़-बाज़ी नीस्त कार-ए-बुल-हवस
'इश्क़-बाज़ी नीस्त कार-ए-बुल-हवस
ख़ाम-ए-तबा’ रा बदाँ हम-चुँ मगस
इश्क़बाज़ी हवस परस्तों का काम नहीं है,
कच्चे मिज़ाज लोगों को मक्खी की तरह समझो, जो हमेशा गंदगी पर जाती है।
असरार-ए-मोहब्बत रा हर दिल न-बुवद क़ाबिल
दुर नीस्त ब-हर दरिया ज़र नीस्त ब-हर काने
इश्क़ के राज़ को सहने वाला हर दिल नहीं हो सकता,
जिस तरह हर दरिया में मोती नहीं होता और हर खान (खदान) में सोना नहीं होता।
बुल-हवस 'इश्क़ म-कुन ऐ दिल-ए-ना-सब्र-ओ-क़रार
'आशिक़ी फ़न्न-ए-शरीफ़स्त वले कारे तु नीस्त
ऐ हवस के पुजारियों, इश्क़ मत करना!
ऐ बेसब्र और बेचैन दिल, आशिक़ी तो शरीफ़ों का फ़न है, और ये तेरा काम नहीं है।
इश्क़-सोज़ाँ आतिश-ओ-’आशिक़ ख़सस्त
'आशिक़ी कर्दन न-कार-ए-हर कसस्त
इश्क़ जलती हुई आग है, और आशिक़ तिनके की तरह होता है,
जो इस आग में जलकर राख हो जाता है,आशिक़ी करना हर किसी के मुक़द्दर में नहीं।
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