बयान-ए-आँकि कुश्तन-ओ-ज़हर दादन-ए-मर्द-ए-ज़रगर ब-इशारत-ए-इलही बूद न ब-हवा-ए-नफ़्स-ओ-तअम्मुल-ए-फ़ासिद
उस बयान में कि सुनार को मारना ख़ुदाई इशारा पर था, न किसी बुरे ख़याल से
कुश्तन-ए-ईं मर्द बर दस्त-ए-हकीम
ने पय-ए-उम्मीद बूद-ओ-ने ज़-बीम
उस मर्द का, तबीब के हाथ से हलाक होना
न किसी उम्मीद की बिना पर था, न किसी ख़ौफ़ से
ऊ न-कुश्तश अज़ बरा-ए-तब'-ए-शाह
ता-नयामद अम्र-ओ-इल्हाम-ए-इलाह
उसने बादशाह की ख़ातिर से उसे क़त्ल नहीं किया
जब तक कि अल्लाह की तरफ़ से हुक्म और इलहाम न आया
आँ पिसर रा किश ख़िज़्र ब-बुरीद हल्क़
सिर्र-ए-आँ रा दर नयाबद 'आम ख़ल्क़
वो लड़का ख़िज़्र ने जिसका गला काटा था
उसका भेद ‘आम मख़्लूक़ नहीं समझ सकती
आँ-कि अज़ हक़ याबद ऊ वह्य-ओ-जवाब
हर चे फ़रमायद बुवद ऐ'न-ए-सवाब
जो शख़्स अल्लाह की जानिब से वह्य और ख़िताब पाता है
वो जो कुछ कहता है बिलकुल दुरुस्त होता है
आँ-कि जाँ बख़्शद अगर ब-कुशद रवास्त
नाएबस्त-ओ-दस्त-ए-ऊ दस्त-ए-ख़ुदास्त
जो जान ‘अता करता है अगर क़त्ल भी करे तो जाइज़ है
वो (अल्लाह) का क़ाइम-मक़ाम है और उसका हाथ ख़ुदा का हाथ है
हम-चु इस्मा'ईल पेशश सर बनेह
शाद-ओ-ख़ंदाँ पेश-ए-तेग़श जाँ ब-देह
हज़रत इस्मा'ईल की तरह उसके सामने सर झुका दे
और हँसी-ख़ुशी उसकी तलवार से क़त्ल हो जा
ता ब-मानद जाँत ख़ंदाँ ता अबद
हम-चु जान-ए-पाक-ए-अहमद बा-अहद
ताकि तेरी रूह हमेशा ख़ुश रहे
जिस तरह कि अहमद (मुज्तबा) की रूह-ए-पाक अल्लाह के साथ ख़ुश है
'आशिक़ाँ जाम-ए-फ़रह आँगह कशंद
कि ब-दस्त-ए-ख़्वेश ख़ूबाँ शाँ कशंद
‘आशिक़ ख़ुशी का जाम उस वक़्त पीते हैं
जब कि मा’शूक़ अपने हाथ से उनको क़त्ल करते हैं
शाह आँ ख़ूँ अज़ पय-ए-शहवत न-कर्द
तू रिहा कुन बद-गुमानी-ओ-न-बर्द
वो ख़ून बादशाह ने शहवत की ख़ातिर नहीं किया
तू (इस मु’आमला)में बद-गुमानी और झगड़े को छोड़ दे
तू गुमाँ बुर्दी कि कर्द आलूदगी
दर सफ़ा ग़िश के हलद पालूदगी
तू ने ये गुमान किया कि वो ख़ाहिश-ए-नफ़्सानी से मुलव्विस था
(लेकिन) साफ़ में सफ़ाई खोट को कब छोड़ती है
बहर-ए-आनस्त ईं रियाज़त वीं जफ़ा
ता बर आरद कूरः अज़ नुक़्रः जफ़ा
ये मेहनत और मशक़्क़त तो इसलिए है
कि भट्टी चाँदी से मैल को निकाल दे
बहर-ए-आनस्त इम्तिहान-ए-नेक-ओ-बद
ता-ब-जोशद बरसर आरद ज़र ज़-बद
खरे और खोटे का इम्तिहान इसलिए है
ताकि वो जोश में आए और सोना अपना मैल ऊपर ले आए
गर न-बूदे कारश इल्हाम-ए-इलाह
ऊ सगे बूदे दरानंदः न शाह
अगर उसका काम ख़ुदा के इल्हाम से न होता
तो वो फाड़ खाने वाला कुत्ता होता, बादशाह न होता
पाक बूद अज़ शह्वत-ओ-हिर्स-ओ-हवा
नेक कर्द ऊ लेक नेक-ए-बदनुमा
वो शहवत और हिर्स-ओ-हवस से पाक था
उसने अच्छा किया लेकिन अच्छा ब-ज़ाहिर बुरा
गर ख़िज़्र दर बहर कश्ती रा शिकस्त
सद दुरुस्ती दर शिकस्त-ए-ख़िज़्र हस्त
अगरचे ख़िज़्र ने समुंद्र में कश्ती तोड़ दी
(लेकिन) ख़िज़्र के तोड़ने में सौ दुरुस्तियाँ थीं
वह्म-ए-मूसा बा-हमः नूर-ओ-हुनर
शुद अज़ाँ महजूब तू बे-पर म-पर
बा-वुजूद तमाम नूर-ए-हुनर के मूसा का ख़याल
उस तक न पहुँचा, तू भी बे-पर की न उड़ा
आँ गुल-ए-सुर्ख़स्त तू ख़ूनश म-ख़्वाँ
मस्त-ए-'अक़्लस्त ऊ तू मज्नूनश म-ख़्वाँ
वो सुर्ख़ फूल है तू उसको ख़ून न कह
वो ’अक़्ल से मस्त है तू उसको दीवाना न समझ
गर बुदे ख़ून-ए-मुसलमाँ काम-ए-ऊ
काफ़िरम गर बुर्दमे मन नाम-ए-ऊ
अगर मुसलमान का ख़ून बहाना उसका मक़सूद होता
तो मैं काफ़िर होता अगर उसका नाम भी लेता
मी ब-लर्ज़द 'अर्श अज़ मद्ह-ए-शक़ी
बद-गुमाँ गर्दद ज़-मदहश मुत्तक़ी
बद-बख़्त (और) संग-दिल की ता’रीफ़ से ‘अर्श लरज़ता है
और उसकी ता’रीफ़ से परहेज़गार बद-गुमाँ हो जाता है
शाह बूद-ओ-शाह बस आगाह बूद
ख़ास बूद-ओ-ख़ासः-ए-अल्लाह बूद
वो बादशाह था, और बहुत बा-ख़बर बादशाह था
वो ख़ास था और अल्लाह तआ’ला का मख़्सूस था
आँ कसे रा कश चुनीं शाहे कुशद
सू-ए-बख़्त-ओ-बेहतरीं जाहे कशद
वो आदमी जिसको ऐसा बादशाह क़त्ल करता है
उसको तख़्त और बेहतरीन मर्तबा ’इनायत फ़रमाता है
गर न-दीदे सूद-ए-ऊ दर क़ह्र-ए-ऊ
के शुदे आँ लुत्फ़-ए-मुत्लक़ क़ह्र जू
अगर (अल्लाह तआ’ला) उसका फ़ाइदा क़हर में न देखता
तो वो सरापा लुत्फ़-ओ-करम, क़हर क्यूँ करता
ब-चे मी लर्ज़द अज़ाँ नेश-ए-हज्जाम
मादर-ए-मुश्फ़िक़ दराँ ग़म शाद काम
पछने लगाने की तक्लीफ़ से बच्चा तो लरज़ता है
(लेकिन) उसकी मेहरबान माँ उस तक्लीफ़ से ख़ुश होती है
नीम-जाँ बस्तानद-ओ-सद जाँ देहद
आँ-कि दर वह्मत न-यायद आँ देहद
वो आधी जान लेता है तो सौ जानें देता है
(बल्कि) इतना देता है कि जो तेरे ख़याल में भी नहीं आ सकता
तू क़ियास अज़ ख़्वेश मी गीरी-ओ-लेक
दूर-दूर उफ़्तादः-ए-ब-निगर तू नेक
तू अपने ऊपर क़ियास करता है, लेकिन
तू ग़ौर (हक़ीक़त) से बहुत दूर जा पड़ा है
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