Sufinama

ना'त-ओ-मनक़बत

ना’त हज़रत मुहम्मद (PBUH) की शान में लिखे गए कलाम को कहते हैं। ना’त को हम्द के बा’द पढ़ा जाता है। मनक़बत किसी सूफ़ी बुज़ुर्ग की शान में लिखी गयी शायरी को कहते हैं। हम्द और ना’त के बा’द अक्सर क़व्वाल जिस सूफ़ी बुज़ुर्ग के उर्स पर क़व्वाली पढ़ते हैं उनकी शान में मनक़बत पढ़ी जाती है।

1833 -1889

क्लासिकी शैली और पैटर्न के प्रतिष्ठित शायर,अपनी किताब "सुख़न-ए-शोरा" के लिए मशहूर

1906 -1993

मा’रूफ़ वारसी सूफ़ी और अदीब-ओ-शाइ’र

-1953

मीलाद-ए-अकबर के मुसन्निफ़ और ना’त गो-शाइ’र

हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और लखनऊ के शाइ’र-ए- मश्शाक़

1966

मुसन्निफ़, अदीब और शाइ’र-ए-मश्शाक़

1926 -2020

लोकप्रिय शायर, गंगा-जमुनी तहज़ीब के गीतकार

कराची के मा’रूफ़ सना-ख़्वान-ए-रसूल और शे’र-ओ-सुख़न के लिए मशहूर

1934 -1989

औघट शाह वारसी के चहेते मुरीद

1843 -1928

मा’रूफ़ सूफ़ी शाइ’र-ओ-अदीब

1904 -1998

बिहार के नाम-वर शाइ’र, अदीब, मुसन्निफ़ और मुहक़्क़िक़

1816 -1893

कैफ़ियतुल-आ’रिफ़ीन और कंज़ुल-अंसाब के मुसन्निफ़ और राम-सागर गया के मशहूर सूफ़ी

1920 -1963

पूर्वाधुनिक शायरों में शामिल, परम्परा और आधुनिकता के मिश्रण की शायरी के लिए जाने जाते हैं

1887 -1971

मा’रूफ़ हिन्दुस्तानी शाइ’र और हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद

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