हो निगाह-ए-करम हो निगाह-ए-करम करम निगाह-ए-करम
रोचक तथ्य
منقبت در شان غریب نواز خواجہ معین الدین چشتی (اجمیر-راجستھان)
क़रार मुझ को नहीं है कि बे-क़रार हूँ मैं
तुम्हारी चश्म-ए-करम का उम्मीद-वार हूँ मैं
हो निगाह-ए-करम हो निगाह-ए-करम करम निगाह-ए-करम
सख़ी ख़ुदा ने तुम्हें ऐसा बे-मिसाल किया
नवाज़ा इतना कि साएल को माला-माल किया
ज़माना आज भी शाहिद है ऐ मेरे ख़्वाजा
किसी ग़रीब का तुम ने न रद सवाल किया
हो निगाह-ए-करम हो निगाह-ए-करम करम निगाह-ए-करम
करामत आप के दर पे सख़ी इब्न-ए-सख़ी देखी
दर-ए-अक़्दस पे हम ने भीड़-सी हर दम लगी देखी
न लौटा आज तक महरूम कोई आप के दर से
तुम्हें देते नहीं देखा मगर झोली भरी देखी
हो निगाह-ए-करम हो निगाह-ए-करम करम निगाह-ए-करम
यही है तुम से मिरी इल्तिजा ग़रीब-नवाज़
सुना है सुनते हो सब की सदा ग़रीब-नवाज़
तुम्हारी नगरी में ख़्वाजा तुम्हारी चौखट पर
नसीब लाया हूँ फूटा हुआ ग़रीब-नवाज़
हो निगाह-ए-करम हो निगाह-ए-करम करम निगाह-ए-करम
हैं आप मिरे मुश्किल-कुशा ग़रीब-नवाज़
करेंगे पार सफ़ीना मेरा ग़रीब-नवाज़
न लिखूँ हूँ अपने मक़्सद-ए-नाज़ मुझ को भी
कि इस ग़रीब को अब मिल गया ग़रीब-नवाज़
हो निगाह-ए-करम हो निगाह-ए-करम करम निगाह-ए-करम
हम पुकारेंगे तुम्हें तुम हो हमारे ख़्वाजा
तुम हो बेकस के ग़रीबों के सहारे ख़्वाजा
वक़्त का मारा हूँ क़िस्मत का सताया हूँ मगर
आप की सम्त उठी है मेरी बेताब नज़र
वाक़िआ' ये है कि मर-मर के जिए जाता हूँ
उसी फ़रियाद पे फ़रियाद किए जाता हूँ
दिल-ए-नाशाद को ख़्वाजा मेरे अब शाद करो
'उस्मान हरूनी का सदक़ा मेरी इमदाद करो
मेरी बिसात ही किया है ये जानता हूँ में
तेरे करम के सहारे पे जी रहा हूँ मैं
करम कर मेरे ख़्वाजा ग़म की बदली दिल पे छाई है
मेरी बिगड़ी बना दे तू ने लाखों की बनाई है
हो निगाह-ए-करम हो निगाह-ए-करम करम निगाह-ए-करम
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