सिज़ेद बर शान-ए-तू ’आलम पनाही निज़ामुद्दीन महबूब-ए-इलाही

सिज़ेद बर शान-ए-तू ’आलम पनाही निज़ामुद्दीन महबूब-ए-इलाही
ख़्वाजा नाज़िर निज़ामी
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रोचक तथ्य
منقبت درشان محبوب الہی خواجہ نظام الدین اولیا (دہلی۔ہندوستان)
सिज़ेद बर शान-ए-तू ’आलम पनाही निज़ामुद्दीन महबूब-ए-इलाही
ज़हे औज-ए-जमाल-ए-ख़ानक़ाही
मिटा दी सारी दुनिया की स्याही
ये है इम्कान-ए-’आलम की गवाही
फ़क़ीरों को 'अता की बादशाही
सिज़ेद बर शान-ए-तू ’आलम पनाही निज़ामुद्दीन महबूब-ए-इलाही
शरी'अत-साज़ तेरी हर नवा है
तरीक़त-साज़ तेरी हर अदा है
हक़ीक़त-साज़ तेरा मुद्द'आ है
तु महबूब-ए-नबी नूर-ए-ख़ुदा है
सिज़ेद बर शान-ए-तू ’आलम पनाही निज़ामुद्दीन महबूब-ए-इलाही
है सुल्तान-उल-मशाइख़ तेरा रुत्बा
नज़र अफ़रोज़ है हर तेरा जल्वा
अज़ल से ता-अबद है तेरा चर्चा
क़यामत तक रहेगा बोल-बाला
सिज़ेद बर शान-ए-तू ’आलम पनाही निज़ामुद्दीन महबूब-ए-इलाही
'अरब में हर तरफ़ हलचल मची है
कि इसराईल से जंग ठन गई है
पस-ए-मंज़र ये क़ौमी दुश्मनी है
मदद का वक़्त ऐ इब्न-ए-'अली है
सिज़ेद बर शान-ए-तू ’आलम पनाही निज़ामुद्दीन महबूब-ए-इलाही
सग-ए-दरबार 'नाज़िर' इक गदा है
तुम्हारे दर का इस का आसरा है
वसीला उस को हासिल आप का है
ब-रब्त-ए-पीर ज़ामिन ये दु'आ है
सिज़ेद बर शान-ए-तू ’आलम पनाही निज़ामुद्दीन महबूब-ए-इलाही
- पुस्तक : हदीस-ए-निज़ामी (पृष्ठ 141)
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