Sufinama

नहीं ज़ख़्म-ए-दिल अब दिखाने के क़ाबिल

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

नहीं ज़ख़्म-ए-दिल अब दिखाने के क़ाबिल

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

MORE BYग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

    नहीं ज़ख़्म-ए-दिल अब दिखाने के क़ाबिल

    ये नासूर है बस छुपाने के क़ाबिल

    सर्व क़ामत माशूक, ख़ूबसूरत बेनियाज़ महबूब

    तुम्हारे बलंद कद क़ामत ने आलम का निज़ाम परागंदा कर दिया है

    तेरे रू-ब-रू आऊँ किस मुँह से प्यारे

    नहीं अब रहा मुँह दिखाने के क़ाबिल

    खुशबख़्ती से फ़र्त-ए-शौक़ से अगर मुझे मौका मिले तो

    मैं तुम्हारी गली के सग के बोसे सद हज़ार नाज़ से ले लूँ

    वुफ़ूर-ए-ग़म-ए-यास ने ऐसा घेरा

    छोड़ा कहीं आने जाने के क़ाबिल

    आख़िर गाहे गाहे मुझ ग़म-ज़दा का हाल क्यों नहीं पूछते

    मैं तुम्हारे आस्ताने पर हमेशा सर ख़म किए हूँ

    शब-ए-हिज्र की तल्ख़ियाँ कुछ पूछो

    नहीं दास्ताँ ये सुनाने के क़ाबिल

    सुंबुल का फूल तुम्हारे क़दमों के नीचे (तुम्हारी दिलकशी पर) निसार हो जाए

    अगर तुम ज़ुल्फ़-ए-दराज़ के साथ गुलशन में जाओ

    ये ठुकरा के दिल फिर कहा मुस्कुरा कर

    था दिल ये दिल से लगाने के क़ाबिल

    तुमने एक निगाह में मेरा दिल छीन लिया और अपनी अदाओं से मेरी जान को फ़रेफ़्ता किया

    बलंद सर्व क़ामत दिलबर हसीन माहताब (महबूब)

    जो देखा मुझे फेर लीं अपनी आँखें

    जाना मुझे मुँह लगाने के क़ाबिल

    मुझे शमशीर, तीर-ओ-ख़ंजर से क़त्ल करना बेकार है

    तुम्हारी नीमबाज़ आँखों ने मेरा काम ऐसे ही तमाम कर दिया है

    तेरी बज़्म में सैकड़ों आए बैठे

    हमी एक थे क्या उठाने के क़ाबिल

    नसीर अगर तुम दोनों आलम में सआदत इज़्ज़त के ख़्वास्त-गार हो

    तो किसी पाकबाज़ के हाथ पर बै'अत कर लो

    ये काफ़िर निगाहें ये दिलकश अदाएँ

    नहीं कुछ रहा अब बचाने के क़ाबिल

    दयार-ए-मोहब्बत के सुल्ताँ से कह दो

    ये वीराँ कदा है बसाने के क़ाबिल

    किया ज़िक्र दिल का तो हँस कर वो बोले

    नहीं है ये दिल रह्म खाने के क़ाबिल

    निगाह-ए-करम यूँ ही रखना ख़ुदारा

    मैं हूँ दिल आज़माने के क़ाबिल

    निशान-ए-कफ़-ए-पा-ए-जानाँ पे यारब

    हमारा ये सर हो झुकाने के क़ाबिल

    कभी क़ब्र-ए-'मुश्ताक़' पर से जो गुज़रे

    कहा ये निशाँ है मिटाने के क़ाबिल

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    हाजी महबूब अ'ली

    हाजी महबूब अ'ली

    स्रोत :
    • पुस्तक : असरार-उल-मुशताक़

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