Sufinama

तहज़ीब-ए-इमारत रोज़ नए अंदाज़-ए-शबिस्ताँ बदलेगी

नीयाज़ मकनपुरी

तहज़ीब-ए-इमारत रोज़ नए अंदाज़-ए-शबिस्ताँ बदलेगी

नीयाज़ मकनपुरी

MORE BYनीयाज़ मकनपुरी

    तहज़ीब-ए-इमारत रोज़ नए अंदाज़-ए-शबिस्ताँ बदलेगी

    दोस्त मगर शायद ये कभी दुनिया-ए-ग़रीबाँ बदलेगी

    तरमीम-ओ-तग़य्युर के फ़ित्ने उठते हैं फ़क़त ऐवानों में

    बदली है हरगिज़ कैफ़ीयत काशाना-ए-वीराँ बदलेगी

    उम्मीद-ए-बहाराँ से पहले ये बात हमें मा'लूम थी

    मौसम की तरह हर जुम्बिश पर तक़्दीर-ए-गुलिस्ताँ बदलेगी

    दिखलाएगा जज़्ब-ए-उल्फ़त भी अंदाज़-ए-ज़माना-साज़ी के

    अब मस्लहतन फ़ितरत अपनी आह-ए-दिल-ए-सोज़ाँ बदलेगी

    मजबूर की आहों का तूफ़ाँ इक रोज़ क़यामत लाएगा

    ख़ुद मश्क़-ए-सितम से तंग आके रुख़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ बदलेगा

    अल्लाह तलब की राहों में तस्कीन की मंज़िल भी है कहीं

    आख़िर ये कहाँ तक वहशत-ए-दिल सहरा-ओ-बयाबाँ बदलेगी

    मरहम से नमक-दाँ तक तो हमें पहुँचाया सुकून-ए-राहत ने

    चारा-गरो अब कौन-सा रुख़ ये काविश-ए-दरमाँ बदलेगी

    एहसान-ए-सितम के अफ़्साने दुनिया में रहेंगे अपनी जगह

    'उन्वान की हद तक रूदाद-ए-हालात-ए-परेशाँ बदलेगी

    सोचो तो 'नियाज़'-ए-ज़ार ज़रा उस वक़्त का 'आलम क्या होगा

    ख़ुनुकी-ए-सुकून-ए-यास में जब ये सोज़िश-ए-पिन्हाँ बदलेगी

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY
    बोलिए