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गुलशन-ए-हिंदुस्तान

अज़ीज़ वारसी देहलवी

गुलशन-ए-हिंदुस्तान

अज़ीज़ वारसी देहलवी

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    गुलशन की शादाब फ़ज़ा है फूल खिले हैं डाली डाली

    कितने दिल-कश बर्ग-ओ-समर हैं कितनी है सुन्दर हरियाली

    इस गुलशन के रहने वाले सब हैं इस गुलशन के माली

    हर दिन अपना ई'द मिलन है हर शब अपने घर है दिवाली

    गुलशन की शादाब फ़ज़ा है फूल खिले हैं डाली डाली

    देश हमारा सहन-ए-चमन है सहन-ए-चमन में घूम रहे हैं

    कलियों पर हैं दिल से निछावर फूलों का मुँह चूम रहे हैं

    बरसों हम ना-शाद रहे हैं सदियों हम मग़्मूम रहे हैं

    आज है घर में जश्न-ए-मसर्रत फ़र्त-ए-ख़ुशी से झूम रहे हैं

    गुलशन की शादाब फ़ज़ा है फूल खिले हैं डाली डाली

    इस गुलशन में जो भी रहेगा हर ग़म से आज़ाद रहेगा

    पत्ता पत्ता बूटा बूटा शाद भी है और शाद रहेगा

    फ़िक्र सुकूँ-आमेज़ रहेगी ज़ेहन वफ़ा ईजाद रहेगा

    शोर-ए-ज़िंदाबाद रहा है शोर-ए-ज़िंदाबाद रहेगा

    गुलशन की शादाब फ़ज़ा है फूल खिले हैं डाली डली

    जश्न-ए-तरब है जश्न-ए-तरब में आओ मतवालो आओ

    ज़र्रों को ख़ुर्शीद की ज़ौ दो तारों को महताब बनाओ

    गीत सुनाओ नग़्मा गाओ वज्द में आओ जाम उठाओ

    हिन्द का परचम सब का परचम ये परचम घर घर लहराओ

    गुलशन की शादाब फ़ज़ा है फूल खिले हैं डाली डाली

    नूर बदामाँ आज का दिन है कैफ़ का सामाँ आज की शब है

    शहर-ए-निगाराँ आज का दिन है हुस्न-ए-ग़ज़ालाँ आज की शब है

    राहत-ए-याराँ आज का दिन है दर्द का दर्माँ आज की शब है

    ज़ीस्त का उ'न्वाँ आज का दिन है शोरिश-ए-रिंदाँ आज की शब है

    गुलशन की शादाब फ़ज़ा है फूल खिले हैं डाली डली

    हर दिन अपना ई'द-मिलन है हर शब अपने घर है दिवाली

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लीयात-ए-अज़ीज़ (पृष्ठ 135)
    • रचनाकार : अज़ीज़ वारसी
    • प्रकाशन : मर्कज़ी पिंटरज़, चूड़ीवालान, दिल्ली (1993)

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