आपकी जा-ए-पैदाइश अहमदपुर ज़िला' बारहबंकी है। ये नहीं मा’लूम कब पैदा हुए लेकिन वफ़ात के वक़्त आपकी उ’म्र अस्सी पचासी बरस थी। आपका विसाल 1928 ई’स्वी में हुआ। आपके वालिद शैख़ तहूर अ’ली तमाम उ’म्र लखनऊ में रहे। नसीरुद्दीन हैदराबाद शाह-ए-अवध के दरबार में अक्सर मुसाहिबीन उनके शागिर्द थे। उनका शुमार उ’लमा-ए-लखनऊ में होता था। आपका ननिहाल क़स्बा “सिधोर” में था। आपने दो शादियाँ की थीं। पहली ज़ौजा बिस्वाँ ज़िला सीतापुर और दूसरी क़स्बा सय्यिदैनपुर ज़िला' बाराहबंकी की थीं। आपका इंतिक़ाल रुदौली शरीफ़ में हुआ और वहीं मद्फ़ून हुए। आपको मीलाद शरीफ़ पढ़ने का शौक़ था। मौलाना ग़ुलाम इमाम शहीद से आपकी दाधियाली क़राबत थी। इसलिए ये ज़ौक़ हक़ीक़ी था जो आपको विरासत में मिला था। आपने अ’र्सा तक बंबई में क़याम किया। भाषा शाइ’री की इब्तिदा आपने हाजी वारिस अ’ली शाह की हयात ही से की। आपकी पहली तस्नीफ़ मुश्तमिल बर-शज्रा-ए-बुज़ुर्गान-ए-दीन मौसूमा “वारिस-ए-बेकंथ पथावन” हाफ़िज़ अ’ब्दूर्रज़्ज़ाक़ साकिन बारहबंकी की फ़रमाइश से तब्अ’ हो चुकी है। ये तस्नीफ़ बिल्कुल भाषा ज़बान में है। दूसरी तस्नीफ़ या’नी “पैहम कहानी” 1330 हिज्री में नवाब सौलत जंग की फ़र्माइश से हैदराबाद दकन में तब्अ’ हुई। “पैहम कहानी” भजन, ठुमरी, बसंत, होली और मिलामिलार वग़ैरा का मज्मूआ’ है ये सारा कलाम इर्फ़ान में डूबा हुआ है।