Sufinama

मध्यकालीन हिन्दी कावयित्रियाँ

V4EBook_EditionNumber : 001

प्रकाशन वर्ष : 1953

पृष्ठ : 328

सहयोगी : सुमन मिश्रा

मध्यकालीन हिन्दी कावयित्रियाँ
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org

पुस्तक: परिचय

‘मध्यकालीन हिन्दी कवयित्रियाँ’ में मध्यकालीन स्त्री-कविता को डिंगल की कवयित्रियाँ, निर्गुण धारा की कवयित्रियाँ, कृष्ण काव्य धारा की कवयित्रियाँ, राम काव्य धारा की कवयित्रियाँ, शृंगार काव्य की लेखिकाएँ तथा स्फुट काव्य की लेखिकाएँ – में विभक्त किया है। इन सबको मिलाकर पूरे मध्यकाल में 46 स्त्री-कवियों का उल्लेख किया गया है एवं उनके जीवन और उनकी कविताओं पर टिप्पणी भी की गयी है। सावित्री सिन्हा ने अपने शोध-ग्रंथ में ये दिखाया है कि इन 46 कवयित्रियों में से अधिकांश की एक, दो या तीन कविताएँ ही उपलब्ध हैं। किसी-किसी की तो एक भी नहीं। इनमें से बहुत कम ही ऐसी हैं, जिनका अलग से कोई कविता संकलन भी है। मध्यकाल में स्त्री-कविता का व्यापक रूप से न उपलब्ध होने का कारण उसका संरक्षण न होना है। जिन स्त्रियों की कविताएँ प्राप्त हुई हैं, वे या तो लोक में निरंतर गाये जाने के कारण या मठ एवं दरबारी सरंक्षण के कारण। डिंगल की कवयित्री हरीजी रानी चावड़ी जोधपुर के राजा मानसिंह की दूसरी पत्नी थीं। उनके रचे गीत एवं टप्पे महाराज मानसिंह के बनाये गानों के संग्रह में पाये जाते हैं। वहीं संत काव्यधारा में सहजोबाई और दयाबाई के ग्रंथ मठ के माध्यम से संरक्षित होते हुए आज प्राप्त हो सके हैं। मीरां और चंद्रसखी के पद विभिन्न संप्रदायों के साथ अपनी लोकप्रियता के चलते मौजूद हैं तो प्रवीण राय राज्य-संरक्षण और केशवदास की कृति के साथ। रानी रूपमती की कविता मालवा में प्रचलित लोकमान्यताओं और लोकगीतों के माध्यम से कंठहार बनी हुई हैं।

.....और पढ़िए
For any query/comment related to this ebook, please contact us at haidar.ali@rekhta.org
बोलिए