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हाजी महबूब अली की अनोखी क़व्वालियाँ

हाजी महबूब अली की अनोखी

क़व्वालियाँ

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नहीं ज़ख़्म-ए-दिल अब दिखाने के क़ाबिल

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

क्यूँ परेशाँ है तबी'अत आज-कल

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

वक़्त-ए-रुख़्सत क्या हुआ कुछ याद है

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

आरज़ू-ए-वस्ल-ए-जानाँ में सहर होने लगी

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

हर जौर-ओ-सितम जिस को गवारा नहीं होता

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

क्या से क्या दो दिन में हालत हो गई

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

मिरा चाहना देख क्या चाहता हूँ

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

रात सारी जनाब ख़ूब रही

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

मजबूर हूँ लाचार हूँ ऐ जान-ए-तमन्ना

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

जिस के फँदे में फँसा है दिल हमारा आज-कल

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

कीजिए लुत्फ़-ओ-करम ऐ जान-ए-मन

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

मुझ को तो तुझ से प्यार है प्यारे

ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी

हो गई उन से मोहब्बत हो गई

रा'ना अकबराबादी
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