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ज़हीन शाह ताजी

1902 - 1978 | कराची, पाकिस्तान

मा’रूफ़ शाइ’र, अदीब, मुसन्निफ़ और सूफ़ी

मा’रूफ़ शाइ’र, अदीब, मुसन्निफ़ और सूफ़ी

ज़हीन शाह ताजी के अशआर

हर तमन्ना इ’श्क़ में हर्फ़-ए-ग़लत

आ’शिक़ी में मा'नी-ए-हासिल फ़रेब

दुआ’ लब पे आती है दिल से निकल कर

ज़मीं से पहुँचती है बात आसमाँ तक

साँस में आवाज़-ए-नय है दिल ग़ज़ल-ख़्वाँ है 'ज़हीन'

शायद आने को है वो जान-ए-बहाराँ इस तरफ़

हुस्न-मह्व-ए-रंग-ओ-बू है इ’श्क़ ग़र्क़-ए-हाय-ओ-हू

हर गुलिस्ताँ उस तरफ़ है हर बयाबाँ इस तरफ़

अज़ल से अबद तक कभी आँख दिल की

झपके झपकने पाए तो क्या हो

अल्लाह अल्लाह वो जमाल-ए-दिल-फ़रेब

महफ़िल-ए-कौनैन है महफ़िल-फ़रेब

इ’श्क़ हर-आन नई शान-ए-नज़र रखता है

ग़मज़ा-ओ-इ’श्वा-ओ-अन्दाज़-ओ-अदा कुछ भी नहीं''

वो चमका चाँद छटकी चाँदनी तारे निकल आए

वो क्या आए ज़मीं पर आसमाँ ने फूल बरसाए

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