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Sufinama
Mirza Mazhar Jan-e-Janan's Photo'

मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ

1699 - 1781 | दिल्ली, भारत

दिल्ली के मा’रूफ़ नक़्शबंदी मुजद्ददी बुज़ुर्ग और मुमताज़ सूफ़ी शाइ’र

दिल्ली के मा’रूफ़ नक़्शबंदी मुजद्ददी बुज़ुर्ग और मुमताज़ सूफ़ी शाइ’र

मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ के अशआर

शाख़-ए-गुल हिलती नहीं ये बुलबुलों को बाग़ में

हाथ अपने के इशारे से बुलाती है बहार

ख़ुदा के वास्ते इस को टोको

यही इक शहर में क़ातिल रहा है

हम गिरफ़्तारों को अब क्या काम है गुलशन से लेक

जी निकल जाता है जब सुनते हैं आती है बहार

अगर ये सर्द-मेहरी तुज को आसाइश सिखलाती

तो क्यूँकर आफ़्ताब-ए-हुस्न की गर्मी में नींद आती

मरता हूँ मीरज़ाइ-ए-गुल देख हर सहर

सूरज के हाथ चुनरी तो पंखा सबा के हाथ

मिरा जी जलता है उस बुलबुल-ए-बेकस की ग़ुर्बत पर

कि जिन ने आसरे पर गुल के छोड़ा आशियाँ अपना

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