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हाजी महबूब अ'ली

1914 - 1992

हाजी महबूब अ'ली के वीडियो

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हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

अपनी तजल्लियों में वो ऐसे निहाँ रहे

हाजी महबूब अ'ली

अब आदमी कुछ और हमारी नज़र में है

हाजी महबूब अ'ली

अस्सलाम ऐ फ़ख़्र-ए-इंसाँ अस्सलाम

हाजी महबूब अ'ली

आमदः ब-क़त्ल-ए-मन आँ शोख़ सितम-गारे

हाजी महबूब अ'ली

आरज़ू-ए-वस्ल-ए-जानाँ में सहर होने लगी

हाजी महबूब अ'ली

आराम के साथी क्या क्या थे जब वक़्त पड़ा तो कोई नहीं

हाजी महबूब अ'ली

आवाज़ किसी की है ये बरबत की नहीं है

हाजी महबूब अ'ली

'आशिक़ी चीस्त ब-गो बंदः-ए-जानाँ बूदन

हाजी महबूब अ'ली

आस्तीं बर रुख़ कशीदी हम-चु मक्कार आमदी

हाजी महबूब अ'ली

इस मम्लिकत का मर्द-ए-मुसलमाँ चला गया

हाजी महबूब अ'ली

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

हाजी महबूब अ'ली

ऐ तुर्क-ए-मस्त नाज़े ऐ माह-ए-बे-नियाज़े

हाजी महबूब अ'ली

ऐ दर रह-ए-तहक़ीक़ ज़ हर सू-ए-तु राहे

हाजी महबूब अ'ली

ऐ सर्व-ए-नाज़नीने ऐ तुर्क-ए-बे-नियाज़े

हाजी महबूब अ'ली

ऐ सर्व-ए-नाज़नीन-ए-मन अज़ मन चे दीदः-ई

हाजी महबूब अ'ली

क्यूँ न अश्क-बार हुआ करूँ क्यूँ न बे-क़रार रहा करूँ

हाजी महबूब अ'ली

क्यूँ परेशाँ है तबी'अत आज-कल

हाजी महबूब अ'ली

क्या से क्या दो दिन में हालत हो गई

हाजी महबूब अ'ली

काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ हो

हाजी महबूब अ'ली

क़िस्मत खुली है आज हमारे मज़ार की

हाजी महबूब अ'ली

किसी का कोई मूनिस है किसी का कोई चारा है

हाजी महबूब अ'ली

कीजिए लुत्फ़-ओ-करम ऐ जान-ए-मन

हाजी महबूब अ'ली

कौन बैठा है अब अंदेशा-ए-फ़र्दा ले कर

हाजी महबूब अ'ली

चूमी रिकाब उठ के किसी शहसवार की

हाजी महबूब अ'ली

ज़ महजूरी बर आमद जान-ए-'आलम

हाजी महबूब अ'ली

ज़ख़्मों से कलेजे को भर दे बर्बाद सुकून-ए-दिल कर दे

हाजी महबूब अ'ली

ज़बान-ए-जल्वा से है गोया जहाँ का सारा निगार-ख़ाना

हाजी महबूब अ'ली

जिस के फँदे में फँसा है दिल हमारा आज-कल

हाजी महबूब अ'ली

जिसे दीद तेरी नसीब हो वो नसीब क़ाबिल-ए-दीद है

हाजी महबूब अ'ली

तु सुल्तान-ए-साहिब सरीर आमदी

हाजी महबूब अ'ली

तेरा ग़म रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी है

हाजी महबूब अ'ली

तिरे 'इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

हाजी महबूब अ'ली

तिरा आस्ताँ जो न मिल सका तेरी राह-ए-गुज़र पे जबीं सही

हाजी महबूब अ'ली

तोरे द्वारे पड़े जग बीत गए

हाजी महबूब अ'ली

तोरी हर हर अदा को मैं जान गई नाँ

हाजी महबूब अ'ली

दया करो जी सादात हम पर दया करो

हाजी महबूब अ'ली

दर्दमंदम या रसूल-अल्लाह दर्मानम तुई

हाजी महबूब अ'ली

दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उन को सुनाई न गई

हाजी महबूब अ'ली

दिया होता किसी को दिल तो होती क़द्र भी दिल की

हाजी महबूब अ'ली

दिल कुनद सज्द: ब-ईं तर्ज़-ए-ख़िरामीदन-ए-तू

हाजी महबूब अ'ली

दिल परेशाँ दीद: हैराँ कर्द:-ई

हाजी महबूब अ'ली

दिल मी-रवद ज़े-दस्तम साहेब-दिलाँ ख़ुदा-रा

हाजी महबूब अ'ली

न-बाशद ख़ाली अज़ तू हेच-बज़्म-ओ-हेच-मय-ख़ानः

हाजी महबूब अ'ली

नहीं ज़ख़्म-ए-दिल अब दिखाने के क़ाबिल

हाजी महबूब अ'ली

प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करो

हाजी महबूब अ'ली

पी के निकला है जो साक़ी तेरे मय-ख़ाने से

हाजी महबूब अ'ली

पीरान-ए-पीर मोहे ऐसा रंगना

हाजी महबूब अ'ली

ब-ख़ुदा ग़ैर-ए-ख़ुदा दर दो-जहाँ चीज़े नीस्त

हाजी महबूब अ'ली

बख़्शिश कहाँ है साहिब-ए-क़ुरआँ तिरे बग़ैर

हाजी महबूब अ'ली

बे-हिजाबानः दर आ अज़ दर-ए-काशान:ए-मा

हाजी महबूब अ'ली

मैं इसी में शादमाँ हूँ मुझे अब यही है करना

हाजी महबूब अ'ली

मजबूर हूँ लाचार हूँ ऐ जान-ए-तमन्ना

हाजी महबूब अ'ली

मुझे क्या क़रार नसीब हो मेरी आज तक तलबी नहीं

हाजी महबूब अ'ली

मुझ को तो तुझ से प्यार है प्यारे

हाजी महबूब अ'ली

मन कीस्तम ता हर ज़माँ पेश-ए-नज़र बीनम तुरा

हाजी महबूब अ'ली

मिरे होते हुए कोई शरीक-ए-इम्तिहाँ क्यूँ हो

हाजी महबूब अ'ली

मिरा चाहना देख क्या चाहता हूँ

हाजी महबूब अ'ली

मिसाल-ए-मुस्तफ़ा कोई पैग़म्बर हो नहीं सकता

हाजी महबूब अ'ली

मोहब्बत सहल भी दुश्वार भी है

हाजी महबूब अ'ली

मोहम्मद गुल अस्त व अली बू-ए-गुल

हाजी महबूब अ'ली

ये कहाँ थी मेरी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

हाजी महबूब अ'ली

या मोहम्मद ब-मन-ए-बे-सर-ओ-सामाँ मददे

हाजी महबूब अ'ली

याद उन की दिल में रहती है और हिज्र की रातें होती हैं

हाजी महबूब अ'ली

रात सारी जनाब ख़ूब रही

हाजी महबूब अ'ली

वक़्त-ए-रुख़्सत क्या हुआ कुछ याद है

हाजी महबूब अ'ली

शान सुबहान है इंसान बने बैठे हैं

हाजी महबूब अ'ली

सू-ए-शहर-ए-'इश्क़ राहे दीगर अस्त

हाजी महबूब अ'ली

सनमा रह-ए-क़लन्दर सज़द अर ब-मन नुमाई

हाजी महबूब अ'ली

सना बशर के लिए है बशर सना के लिए

हाजी महबूब अ'ली

सबा ब-कूचः-ए-आँ यार गर हमी गुज़री

हाजी महबूब अ'ली

सँभल कर देखना बर्क़-ए-तजल्ला देखने वाले

हाजी महबूब अ'ली

समझा न हक़ को बंदा कहाया तो क्या हुआ

हाजी महबूब अ'ली

सरकार ग़ौस-ए-आ'ज़म नज़र-ए-करम ख़ुदा-रा

हाजी महबूब अ'ली

सूरत-ए-इंसान-ए-कामिल रा निशाँ मौला-ए-रूम

हाजी महबूब अ'ली

साकिन-ए-दैर-ओ-हरम शो या सर-ए-बाज़ार बाश

हाजी महबूब अ'ली

हम रौनक़-ए-हस्ती का सामान लुटा बैठे

हाजी महबूब अ'ली

हर आह तबस्सुम बन जाए हर अश्क सितारा हो जाए

हाजी महबूब अ'ली

हर चंद तु शाह-ओ-मा गदाएम

हाजी महबूब अ'ली

हर जौर-ओ-सितम जिस को गवारा नहीं होता

हाजी महबूब अ'ली

हर दम ख़याल-ए-जानाँ आँखों के रू-ब-रू है

हाजी महबूब अ'ली

हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला

हाजी महबूब अ'ली

हो गई उन से मोहब्बत हो गई

हाजी महबूब अ'ली

दीवान: शुदम दर आरज़ूयत

हाजी महबूब अ'ली

रफ़्तम अंदर तह-ए-ख़ाक उंस-ए-बुतानम बाक़ीस्त

हाजी महबूब अ'ली

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