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कलाम
पुरनम इलाहाबादी
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जब लग ख़ुदी करें ख़ुद नफ़सों तब लग रब्ब न पावें हूशर्त फ़ना नूँ जानें नाहीं, नाम फ़क़ीर रखावें हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
विच्चे काबा विच्चे क़िबला इल-लल्लाह पुकाराँ हूकामिल मुर्शिद मिलिया 'बाहू' आपे लैसी साराँ हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
अहमद रज़ा ख़ाँ
कलाम
बात कुछ दिल की सुनी ऐ निस्बत-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ातहो बुतों से बे नियाज़ी तो ख़ुदा से क्या ग़रज़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
नाल नज़ारे रहमत वाले खड़ा हज़ूरों पाले हूनाम फ़क़ीर तिसे दा 'बाहू' घर विच यार विखाले हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
मुज-से मरीज़ को तबीब हाथ अपना मत लगाउस को ख़ुदा पे छोड़ दो बहर-ए-ख़ुदा जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
'तुराब' उस शख़्स को हम नेक-ओ-ख़ुश-औक़ात कहते हैंख़ुदा की याद में जिस के कटे औक़ात हमवारा
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
ख़ुदी के जौहर आसानी में इंसाँ पर नहीं खुलतेहम अपने सामने खुल कर फ़क़त मुश्किल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
नाल नज़ारे रहमत वाले खड़े हज़ूरों पाले हूनाम फ़क़ीर तिन्हां दा जो घर बैठे यार विखाले हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
शौक़ दा देवा बाल अंधेरे मताँ लब्भे वस्त खड़ाती हूमरण थीं उगे मर रहे जिन्हाँ हक़ दी रम्ज़ पछाती हू