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कलाम
हुस्न-मह्व-ए-रंग-ओ-बू है इश्क़ ग़र्क़-ए-हाय-ओ-हूहर गुलिस्ताँ उस तरफ़ है हर बयाबाँ इस तरफ़
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
क्या शोर-ए-क़यामत हो अजब फ़ित्ना हो बरपाजब यार खड़ा हो मिरे बिस्तर के बराबर
शाह तुराब अली क़लंदर काकोरवी
कलाम
मैं हुस्न-ए-मुजस्सम हूँ मैं गेसू-ए-बरहम हूँमैं फूल हूँ शबनम हूँ मैं जल्वः-ए-जानानः
वासिफ़ अली वासिफ़
कलाम
इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ थीं दूर हटावे हूक़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
'ज़हीन' अल्लाह को मैं देखता हूँ हुस्न-ए-जानाँ मेंनज़र ख़ुर्शीद के जल्वे मह-ए-कामिल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
तू बहार-ए-हुस्न है तेरी नज़र हुस्न-ए-बहारतू नहीं तो ये गुलिस्ताँ का गुलिस्ताँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
लिबास-ए-नौ-बनौ हर दौर में बदले हैं दोनों नेन इश्क़-ए-सरमदी बदला न हुस्न-ए-जावेदाँ बदला
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जो दम ग़ाफ़ल सो दम काफ़िर मुर्शिद इह फ़रमाया हूमुर्शिद सोहणी कीती 'बाहू' पल विच जा पहुँचाया हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
न सोहणी न दौलत पल्ले क्यूँकर यार मनावाँ हूदुख हमेशा इह रहसि 'बाहू' रोंदी ही मर जावां हू
हज़रत सुल्तान बाहू
कलाम
सुकून-ए-हुस्न जाने इज़्तिरार-ए-इश्क़ क्या शय हैतलव्वुन क्या है उस को साहब-ए-तम्कीन फ़रमाएँ